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गाथा ३५
१८६ न हो, समिति याने सावधानी सहित मल-मूत्र, कफ, थूक, नाक आदि क्षेपण करना प्रतिष्ठा न समिति कहलाती है।
प्रश्न १५८ ---गुप्ति नामक भावसवरविशेष किसे कहते है ?
उत्तर-ससारके कारणभूत रागादिसे बचनेके लिये अपनी आत्माको निज सहज शुद्ध पात्मतत्त्वकी भावना, उपयोगमे सुरक्षित रखने, लीन करनेको गुप्ति कहते है ।
प्रश्न १५६-गुप्तिरूप भावसंवरकी साधनाके उपाय क्या है ?
उत्तर- मनोगुप्ति, व वनगुप्ति, कायगुप्ति, ये तीन गुप्तिरूप भावसंवरके उपाय अथवा विवेष है।
प्रश्न १६०-मनोगुप्ति किसे कहते है ?
उत्तर-रागादि भावोके त्यागको अथवा समीचीन ध्यान करनेको अथवा मनको वश मे करनेको मनोगुप्ति कहते है।
प्रश्न १६१-वचनगुप्ति किसे कहते है ? उत्तर-कठोर वचनादिके त्यागको अथवा मौन धारण कर लेनेको वचनगुप्ति कहले
है
प्रश्न १६२ - कायगुप्ति किसे कहते हे ? उत्तर- समस्त पापोसे दूर रहनेको व शरीरकी चेष्टायोकी निवृत्तिको कायगुप्ति कहते
प्रश्न १६३- धर्म किसे कहते है ?
उत्तर-क्रोधादि कषायोंका उद्भव कर देने वाले कारणोका प्रसग उपस्थित होनेपर भी इच्छा और कलुपताओंके उत्पन्न न होनेको और स्वभावकी स्वच्छता बनी रहनेको धर्म कहते है।
प्रश्न १६४-धर्म शब्दका निरुक्त्यर्थ क्या है ? . उत्तर-- धरतीति धर्म = जो जघन्यपदसे हटाकर उत्तम पदमे धारण करावे उसे धर्म कहते है।
प्रश्न १६५ - जघन्य और उत्कृष्ट पद क्या है ?
उत्तर-- मिथ्यात्व, राग, द्वेषसे आत्माका कलुपित रहना तो जघन्यपद है और परमपारिणामिक रूप निजचैतन्यस्वभावके अवलम्बनके बलसे स्वभावका स्वच्छ विकास होना उत्कृष्ट पद है।
प्रश्न १६६- धर्मके अङ्ग कितने है ? उत्तर - धर्मके १० अङ्ग है-(१) क्षमा, (२) मार्दव, (३) आर्जव, (४) शौच,