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द्रव्यसंग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर--उपशान्तमोह नामक ग्यारहवें गुणस्थानमे ११६ प्रकृतियोका सम्वर होता है । इनमे १०३ प्रकृतिया तो पूर्वसवृत है, शेप १६ प्रकृतिया ये है- (१) मतिज्ञानावरण, (२) श्रुतज्ञानावरण, (३) अवधिज्ञानावरण, (४) मन पर्ययज्ञानावरण, (५) केवलज्ञानावरण, (६) चक्षुर्दर्शनावरण, (७) अचक्षुर्दर्शनावरण, (८) अवधिज्ञानावरण, (E) केवलदर्णनावरण, (१०) यश कीतिनामकर्म, (११) उच्चगोत्रकर्म, (१२) दानान्तराय, (१३) लाभान्तराय, (१४) भोगान्तगय, (१५) उपभोगान्तराय और (१६) वीर्यान्तराय ।।
प्रश्न ७२-उपशान्तमोहमे उक्त १६ प्रकृसियोका सवर क्यो होता है ?
उत्तर- समस्त मोहके अभावसे होने वाली वीतरागताके कारण केवल सातावेदनीय को छोडकर सर्वप्रकृतियोका सम्वर हो जाता है।
प्रश्न ७३- यहा सातावेदनीयका सम्वर क्यो नही होता ?
उत्तर- यद्यपि वीतरागता हो गई, किन्तु योगका सद्भाव है । कारण याने योगोके सद्भावसे सातावेदनीयका ईपिय प्रास्रव होता है ।
प्रश्न ७४-उपशान्तमोहमे सातावेदनीयका ईर्यापथ आस्रव क्यो है ?
उत्तर-साम्परायिक आस्रव कषाय होनेपर ही होता है । योगसे आस्रव तो होता है, किन्तु आकर तुरन्त खिर जाता है । कपाय न होनेसे स्थितिबध नही होता । अतः उपशान्तमोहमे केवल सातावेदनीयका ईर्यापथ आस्रव है।
प्रश्न ७५- क्षीणमोहमे कितनी प्रकृतियोका सम्बर होता है ? उत्तर- क्षीणमोह गुणस्थानमे भी उक्त प्रकारसे ११६ प्रकृतियोका सम्वर होता है । प्रश्न ७६- सयोगकेवलीमे कितनी प्रकृतियोका सम्वर होता है ? उत्तर- सयोगकेवली गुणस्थानमे भी उक्त ११६ प्रकृतियोंका सम्बर है। प्रश्न ७७-अयोगकेवली गुणस्थानमे कितनी प्रकृतियोका सम्वर है ?
उत्तर-अयोगकेवली गुणस्थानमे १२० प्रकृतियोका सवर होता है । इनमे ११६ तो पूर्व सवृत है और एक सातावेदनीयका भी सवर होता है ।
प्रश्न ७८-- यहाँ सातावेदनीयका सवर क्यो हो जाता है ? उत्तर-योगका अभाव रहनेसे यहां अवशिष्ट सातावेदनीयका सवर होता है । प्रश्न ७६-शेष २८ प्रकृतिपोका कहां सवर होता है ?
उत्तर-शेष २८ प्रकृतियोमे २ तो दर्शनमोहनीय हैं- (१) सम्यग्मिथ्यात्व और - ) सम्यक्प्रकृति । ५ बन्धननामकर्म हैं, ५ सघातनामकर्म है, ६ स्पर्शादि सम्बन्धी हैं । इनमे
म्यग्मिथ्यात्व व सम्यक्प्रकृतिका तो आस्रव ही नहीं होता, इसलिये उनके सम्वरका वहा ही नही है । ५ बन्धन, ५ सघातनामकर्मोंका शरीरमे अन्तर्भाव किया है, सो जहा