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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न ३७- नोकषायवेदकमोहनीयकर्मके ह प्रकार कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर- नोकपायवेदकमोहनीयकर्म ६ इस प्रकार है- (१) हास्यर्वेदकमोहनीय, (२), रतिवेदकमोहनीय, (३) अरतिवेदकमोहनीय, (४) शोकवेदकमोहनीय, (५) भयवेदकमोहनीय, (६) जुगुप्सावेदकमोहनीय, (७) पुरुषवेदकमोहनीय, (८) स्त्रीवेदकमोहनीय और (8) नपुंसकवेदकमोहनीय ।
प्रश्न ३८-- मिथ्यात्वमोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयको निमित्त पाकर प्रात्मा यथार्थ श्रद्धान न कर सके उसे मिथ्यात्वमोहनीयकर्म कहते है । इस कर्मके उदयसे जीव शुद्ध निजस्वरूपका प्रत्यय नही कर सकता व शरीर आदिमे आत्मबुद्धि करता है ।
प्रश्न ३६- सम्यग्मिथ्यात्वमोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे जीवके न तो केवलसम्यक्त्वरूप परिणाम हो और न केवल मिथ्यात्वरूप परिणाम हो, किन्तु मिले हुए हो उस कर्मको सम्यग्मिथ्यात्वमोहनीयकर्म, कहते हैं।
प्रश्न ४०- सम्यक्प्रकृतिमोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे आत्माके सम्यग्दर्शनमे चल, मलिन, अगाढ दोष उत्पन्न हो उसे सम्यक्प्रकृतिमोहनीयकर्म कहते है । इस कर्मके उदयमे सम्यग्दर्शनका घात नहीं होता।
ये चल मलिन अगाढ दोप भी अत्यन्त सूक्ष्मरूप दोष है। cence प्रश्न ४१- अनन्तानुबन्धी क्रोधवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे पाषाणरेखा सदृश दीर्घकाल तक न मिटने वाले ऐसे "क्रोधका वेदन हो जिससे मिथ्यात्वभाव पुष्ट होता चला जावे उस कर्मको अनन्तानुबन्धी क्रोधवेदकमोहनीयकर्म कहते हैं ।
प्रश्न ४२- अनन्तानुबन्धी मानवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे पाषाणकी कठोरता सदृश दीर्घकाल तक न नमने वाले मानका वेदन हो जिससे मिथ्यात्व पुष्ट होता रहे उसको अनन्तानुबन्धी मानवेदकमोहनीयकर्म कहते है ।
प्रश्न ४३-- अनन्तानुबन्धी मायावेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ।
उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे बासकी जडकी तरह अत्यन्त वक्र माया (छल कपट) का परिणमन हो जिससे मिथ्यात्क पुष्ट होता रहे उसको अनन्तानुबन्धी मायावेदकमोहनीयकर्म कहते है ।
प्रश्न ४४-अनन्तानुबन्धी लोभवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे हिरमजीके रंगकी तरह दीर्घकाल तक न छूटने वाली