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गाथा ३१
१३७ उत्तर- जिस कर्मके उदयसे जीवके भोगमे विघ्न उपस्थित हो उसे भोगान्तरायकर्म कहते है।
प्रश्न ८२-उपभोगान्तरायकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस कर्मके उदयसे जीव उपभोगमे विघ्न आवे उसे उपभोगान्तरायकर्म कहते है।
प्रश्न ८३-- वीन्तिरायकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस कर्मके उदयसे जीवके शक्तिके विकासमे विघ्न हो उसे वीर्यान्तरायकर्म कहते है।
प्रश्न ८४-अघातियाकर्मके कितने भेद है ?
उत्तर-प्रघातिया कर्मके ४ भेद है- (१) वेदनीयकर्म, (२) आयुकर्म, (३) नामकर्म और गोत्रकर्म।
प्रश्न ८५-वेदनीयकर्म किसे कहते है ?
Lउत्तर-- जिस कर्मके उदयसे जीव इन्द्रिय व मनके विषयोंका भोगरूप वेदन करे उसे वेदनीयकर्म कहते है।
प्रश्न ८६-- वेदनीयकर्मके कितने भेद है ? उत्तर- वेदनीयकर्मके २ भेद है-(१) सातावेदनीय और (२) असातावेदनीय । प्रश्न ८७-- सातावेदनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे जीव सुखका वेदन करे उसे सातावेदनीयकर्म कहते है। प्रश्न ८५- असातावेदनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिम कर्मके उदयसे जीव दुःखका वेदन करे उसे असातावेदनीयकर्म कहते है। प्रश्न ८६- क्या वेदनीयकर्मका क्षय होनेपर सुख दुख दोनोका अभाव हो जाता है ? उत्तर- वेदनीयकर्मके क्षय होनेपर सुख और दुःख दोनोका क्षय हो जाता है । प्रश्न ६०- सुखके अभावमे जीवका स्वभाव ही मिट जावेगा?
उत्तर- जीवका स्वभाव है आनद । प्रानद गुणके परिणमन ३ होते है- (१) मानद, (श सुख और (२) दुःख । सुख और दुख आनन्दगुणके विकृत परिणमन है और आनन्द गुणका स्वाभाविक परिणमन है।
प्रश्न ६१- सुख क्यो विकृत परिणमन है ?
उत्तर- सुखका अर्थ है-- सु= सुहावना, ख = इन्द्रियोको अर्थात् जो इन्द्रियोको सुहावना लगे सो सुख है । यह सुख दुःखकी भाति विकृत परिणमन है, क्योकि दुःखका मतलब है--'दु = बुरा, असुहावना, ख = इन्द्रियोको अर्थात् जो इन्द्रियोको असुहावना लगे सो दुःख