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गाथा ३३
१५३ प्रश्न ७-आयुकर्मकी क्या प्रकृति है ?
उत्तर–प्रतिनियन शरीरमे ही जीवको रोके रहना आयुकर्मकी प्रकृति है । 'प्रश्न - नामकर्मकी क्या प्रकृति है ?
उत्तर-नानारूपमय शरीरकी रचनामे निमित्त होना नामकर्मकी प्रकृति है । प्रश्न :- गोत्रकर्मकी क्या प्रकृति है ? उत्तर- उच्च अथवा नीच गोत्र करना गोत्रकर्मकी प्रकृति है। प्रश्न १०- एक समयमे क्या एक प्रकृतिबन्ध होता है या सर्व प्रकृतिबन्ध होता है ? '
उत्तर- यदि आयु प्रकृतिबन्ध (अपकर्षकाल) नही है तो एक समयमे आयुप्रकृतिको छोडकर ७ कर्मप्रकृतियोका बन्ध होता है । यदि अपकर्षकाल है तो पाठो कर्मप्रकृतियोका बध "हो सकता है । सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमे आयुप्रकृति और मोहनीयप्रकृतिके बिना शेप ६ कर्मप्रकृतियोका (कर्मोका) बन्धन होता है । उपशान्तमोह, क्षीणमोह व सयोगकेवलीके केवल एक वेदनीयप्रकृतिका पालव होता है । यह एक प्रकृतिबन्ध दूसरे समय भी नही ठहरता है, इसलिये इमे आस्रव (ईर्यापथ) आस्रव कहते है । वेदी का आसान
प्रश्न ११-अपकर्षकालका तात्पर्य क्या है ?
उत्तर-आयुकर्मके बधनेके ८ प्रकार होते हैं- कर्मभूमि मनुष्य व तिर्यञ्चोके आयु बंधका पहिली बार उनकी वर्तमान आयुके २ बटा ३ भाग बीतनेपर होता है । यदि तब आयु न बधे तब शेष आयुके दो विभाग बीतनेपर होता है । इस प्रकार शेषके दो विभागोमे ६ बार और कहना चाहिये ।
प्रश्न १२-यदि उन आठ बारोमे आयु न बध सके तब कब आयु बधेगी?
उत्तर-यदि उन आठ अपकर्पोमे आयु न बधे तब अन्तिम अन्तर्मुहूर्तमे अवश्य बंध जावेगी । जिसे मोक्ष जाना है उसके उस चरमभवमे कोई आयु नही ववती ।
प्रश्न १३-भोगभूमिया मनुष्य तिर्यञ्चोके आठ अपकर्प कब होते है ?
उत्तर-भोगभूमिया मनुष्य तिर्यञ्चके अन्तिम ६ माह शेप रहनेपर उसके आठ बार दो विभाग करने चाहिये । जैसे पहिली वार दो माह आयु शेप रहनेपर होता है।
प्रश्न १४-अस्थिर भोगभूमियाके नर व तिर्यञ्चोके अपकर्प कैसे होते है ?
उत्तर- भरत और ऐरावत क्षेत्रोमें भोगभूमि पहले, दूसरे, तीसरे कालमे होती है। ये अस्थिर भोगभूमि कहलाती है। अस्थिर भोगभूमि मनुष्य और तिर्यञ्चोके अपकर्प उनकी ६ माह प्रायु शेष रहनेपर ८ बार दो विभागोमें लगानी चाहिये । जैसे कि इनका पहिलो बार ३ माह अायु रोप रहनेपर होता है।
प्रश्न १५ - देव व नारकियोके आयुवन्धके अपकर्ष कव होते है ?