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गाया ३४
प्रश्न ३८-योग क्या प्रात्माका स्वभाव है ?
उत्तर- आत्मप्रदेशपरिस्पन्दरूप योग आत्माका स्वभाव नहीं है, वह तो कर्मोदयवश होता है । योगशक्ति अवश्य गुण या स्वभाव है, सो कर्मोदयमे उसका परित्पन्द परिणमन होता है और प्रतिनियत कर्मोदयके अभावसे व सर्वथा कर्मोदयके अभावसे उसका निष्क्रिय परिणमन होता है । निश्चयनयसे शुद्ध प्रात्मप्रदेश निष्क्रिय होते है, व्यवहारनयसे सक्रिय
प्रश्न ३६- कषाय किसे कहते है ?
उत्तर- जो आत्माको कषे याने दुःख दे अथवा जो निर्दोष परमात्मतत्त्वकी भावना का अवरोध करे उसे कषाय कहते है।
प्रश्न ४०- इन बन्धोके स्वरूप जान लेनेसे हमे क्या शिक्षा लेनी चाहिये ?
उत्तर-ये बन्ध आत्माके स्वभाव नहीं है और न आत्माके है, ऐसा यथार्थ तत्त्व जानकर निज शुद्ध प्रात्मतत्त्वकी भावना करनी चाहिये ।।
प्रश्न ४१-बन्धके कारण जानकर हमे क्या शिक्षा लेनी चाहिये ?
उत्तर-योग और कपायसे उक्त बन्ध होते है, अतः बन्धके विनाशके अर्थ योग और कषायका त्याग करते हुए शुद्ध आत्मतत्त्वकी भावना करनी चाहिये ।।
प्रश्न ४२- योग और कषायका त्याग किस प्रकार होगा ?
-उत्तर-मै ध्रुव आत्मा निष्क्रिय और निष्कषाय हू, इस प्रकारको प्रीतिपूर्वक भावना से योग और कषायकी उपेक्षा होकर शुद्ध प्रात्मतत्त्वकी अभिमुखता होती है । इस पुरुषार्थके बलसे योग और कषाय भी समुच्छिन्न हो जाता है।
प्रश्न ४३- योग और कपायमे पहिले कौन नष्ट होता है ?
उत्तर-पहिले कषाय नष्ट होती है पश्चात् योग नष्ट होता है । कषायका सर्वथा नाश दसवें गुणस्थानके अन्तमे हो जाता है । इस प्रकार बन्धतत्त्वका वर्णन करके अब सवरतत्त्वका वर्णन करते है
चेदरणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेऊ ।
सो भावसवरो खलु दव्वस्सावणिरोहणो अण्णो ॥३४॥ अन्वय-जो चेदरणपरिणामो कम्मस्सासवरिणरोहणे हेऊ सो खलु भाव संवरो, दन्वस्सासवरिणरोहणो अपणो।
अर्थ-जो चेतनपरिणाम ' कर्मके प्रास्रवके रोकनेमे कारण है वह निश्चयसे भावसवर है और द्रव्यास्रवका रुक जाना द्रव्यसवर है ।
प्रश्न १-क्या चेतन परिणाम माते हुए कर्मोको रोक देता है ?