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गाथा ३३
१५६ उत्कृष्टमे वर्णन किया है।
प्रश्न २२- अबाधाकाल किसे कहते है ?
उत्तर- बद्धकर्मस्कन्ध जितने काल उदयमें नही पा सकते उतने कालको अबाधाकाल कहते है। यहां सामान्य अबाधाकालका प्रकरण है, अतः उस बद्ध कर्मस्कन्धमें से कोई भी वर्गणाये जब तक उदयमे नही आ सकती उतना अबाधाकाल यहाँ ग्रहण करना।
प्रश्न २३- विशेषरूपसे अबाधाकाल क्या होता है ?
उत्तर-एक समयमे बधे हुए कर्मस्कन्धोमें भी भिन्न-भिन्न 'कर्मवर्गणावोकी जो-जो स्थिति मिली है उससे पहिलेका काल उन-उन कर्मवर्गणामोका अबाधाकाल कहलाता है।
प्रश्न २४-कर्मोंकी जघन्यस्थिति क्या है ?
उत्तर-ज्ञानावरणकर्मकी अन्तर्मुहूर्त, दर्शनावरणकर्मकी अन्तर्मुहूर्त, मोहनीयकर्मकी अन्तर्मुहूर्त, अन्तरायकर्मकी अन्तर्मुहूर्त, वेदनीयकर्मको १२ मुहूर्त, आयुकर्मकी अतर्मुहूर्त, नामकर्मकी ८ मुहूर्त और गोत्रकर्मकी ८ मुहूर्त जघन्यस्थिति होती है।
प्रश्न २५- इन जघन्यस्थितियोको कौन जीव बांधता है ?
उत्तर-आयुकर्मको छोडकर बाकी सब कर्मोकी जघन्यस्थितियोको उपशमश्रेणी अथवा क्षपकश्रेणीमे होने वाले मुनिवृपभ ही बाधते है । प्रायुकर्मकी जघन्यस्थितिको 'क्षुद्र जन्म वाले जीव बाधते है। हो की प्रश्न २६- अनुभाग बन्ध किसे कहते है ? शम्ति उत्तर-जीव प्रदेशोके साथ बद्ध कर्मस्कन्धोमे सुख दुःख आदि देनेकी शक्ति विशेषके पड जानेको अनुभागबन्ध कहते है।
प्रश्न २७- अनुभागके सक्षिप्त प्रकार कितने है ?
उत्तर-अनुभागके सक्षिप्त ४ प्रकार है-(१) मन्द, (२) मदतीन, (३) तीव्रमद और (४) तीव्र ।
प्रश्न २८- इन ४ प्रकारके अनुभागोमे तारतम्य किस प्रकार है ? -
उत्तर- अनुभागोका नारतम्य उदाहरण द्वारा बताया जा सकता है। एतदर्थ तीन विभाग करने चाहिये- (१) घातिया कर्मोका अनुभाग, (२) पुण्यरूप अघातिया कर्मोंका अनुभाग और (३) पापरूप घातिया कर्मोका अनुभाग ।
प्रश्न २६- घातिया कर्मोके उन चार प्रकारके अनुभागोके उदाहरण क्या है ?
उत्तर- घातिया कर्मोके अनुभाग लता, दारु (काठ), अस्थि व पापाणके समान उत्तरोत्तर कोमलसे कठोर फल देने वाले होते गये है।