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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका. प्रश्न २०७- सूक्ष्मनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे शरीर सूक्ष्म हो, जो न किसीको रोक सके और न किसी से रुक सके उसे सूक्ष्मनामकर्म कहते है।
प्रश्न २०८-अपर्याप्तिनामकर्म किसे कहते है ? ।
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे ऐसा शरीर मिले, जिसकी पर्याप्ति पूर्ण न हो और मरण हो जाय उसे अपर्याप्तिनामकर्म कहते है।
प्रश्न २०६-अस्थिरनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस कर्मके उदयसे शरीरके धातु उपधातु चलित हो जाया करें उसे अस्थिरनामकर्म कहते है।
प्रश्न २१०- अनादेयनामकर्म किसे कहते है ? . . उत्तर-जिस कर्मके उदयसे कान्तिरहित शरीर हो उसे अनादेयनामकर्म कहते हैं। प्रश्न २११- अयश कीर्तिनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे अपयश और अकीति हो उसे अयशःकीतिनामकर्म कहते
प्रश्न २१२-- तीर्थङ्करप्रकृतिनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस कर्मके उदयसे तीर्थंकरपना हो, सर्वज्ञदेवके सातिशय दिव्यध्वनि, विहार आदिसे लोकोपकार हो उसे तीर्थंकरप्रकृतिनामकर्म कहते है ।
प्रश्न २१३-- क्या ये भेद एक-एक कर्मस्कन्ध है ?
- उत्तर-प्रत्येक भेद अनन्त कार्माणवर्गणावोका स्कन्ध है । जिन कार्माणवर्गणाप्रोकी प्रकृति उस भेदरूप है उन कार्माणस्कन्धोकी वह सज्ञा है ।
प्रश्न २१४-- इन द्रव्यास्रबोके जाननेसे कुछ आत्मलाभ है ?
उत्तर-- भूतार्थनयसे यदि इन्हे जाना जाय तो इनका ज्ञान निश्चयसम्यक्त्वका कारण हो जाता है।
प्रश्न २१५-भूतार्थनयसे इन द्रव्यास्रवोका जानना किस प्रकार है ?
उत्तर-- उक्त सब द्रव्यास्रव पर्याये है । किस द्रव्यकी पर्याय है ? पुद्गल द्रव्यकी ये पर्याय पुद्गलद्रव्यसे उत्पन्न हुई है । जहाँसे उत्पन्न हुई है केवल उस द्रव्यकी दृष्टि रहनेपर ये पर्याय गीण हो जाती है और द्रव्यदृष्टि मुख्य हो जाती है। पश्चात द्रव्यदृष्टिमे विकल्पोका अवकाश न होनेसे द्रव्यदृष्टिका विकल्प भी छूटकर आत्माका केवल सहज आनदमय परिणमन का अनुभव रह जाता है । इस शुद्ध आत्मतत्त्वकी अनुभूतिको निश्चयसम्यक्त्व कहते है।
इस प्रकार आस्रव तत्त्वका वर्णन करके वन्वतत्त्वका वर्णन करते है