Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 155
________________ गाथा ३१ १४७ उत्तर-- मरणके पश्चात् नवीन देह धारण करनेके लिये जो जीवका गमन होता है उसे विग्रहगति कहते है। प्रश्न १७७-- क्या सभी विग्रहगतियोंमे जीवका आकार पूर्व भव जैसा होता है ? उत्तर- मोडे लेकर जाने वाली गतिमे जीवका आकार पूर्वभवके आकारका होता है। प्रश्न १७८--बिना मोडेकी विग्रहगतिमे जीवका क्या आकार रहता है ? Sri (उत्तर-- बिना मोडे वाली गतिमें जीवको एक भी समयका अवकाश नही मिलता, किन्तु पहिले समयमे मरा, दूसरे समयमे उत्पन्न हो गया, इसलिये आकार सहित गति न होकर जीवका विसर्पण होकर जन्मस्थानार सकोच हो जाता है । वहाँ प्रानुपूर्व्यनामकर्मका उदय भी नही है। प्रश्न १७६-- नरकगत्यानुपूर्व्यनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे तिर्यंच या मनुष्यगतिसे मरणकर नरकभवमे देहधारणके लिये जाने वाले जीवका आकार पूर्वके देहके प्राकारमे हो उसे नरकगत्यानुपूर्व्यनामकर्म कहते प्रश्न १८०-तिर्यग्गत्यानुपूर्व्यनामकर्म किसे कहते है ? ___उत्तर- जिस कर्मके उदयसे किसी गतिसे मरणकर तिर्यग्गतिमे देहधारणके लिये जाने वाले जीवका आकार पूर्वके देहके आकारमे हो उसे तिर्यग्गत्यानुपूर्व्यनामकर्म कहते है। प्रश्न १८१-मनुष्यगत्यानुपूर्व्यनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे किसी गतिसे मरणकर मनुष्यगतिमे देहधारणके लिये जाने वाले जीवका आकार पूर्वके देहके आकारमे हो उसे मनुष्यगत्यानुपूर्व्यनामकर्म कहते है। प्रश्न १८२- देवगत्यानुपूर्व्यनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे तिर्यञ्च या मनुष्यगतिसे मरणकर देवगतिमे देहधारणके लिये जाने वाले जीवका आकार पूर्वके देहके आकारमे हो उसे देवगत्यानुपूर्व्यनामकर्म कहते है। प्रश्न १८३- अगुरुलघुनामकर्म किसे कहते है ? हल्क उत्तर-जिस कर्मके उदयसे जीवका शरीर यथायोग्य गुरु और लघु हो प्रर्यात न तो ऐसा गुरु शरीर हो कि लोहके गोलेके समान गिर जावे और न ऐसा लघु शरीर हो कि प्राक के तूलके समान उड जावे, उसे अगुरुलघुनामकर्म कहते है। प्रश्न १८४-उपघातनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे अपने ही शरीरका अवयव अपना ही घात करने वाला हो उसे उपघातनामकर्म कहते है। प्रश्न १८५–परघातनामकर्म किसे कहते है ?

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