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गाथा ३१ नामकर्म (समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमडल, स्वाति, वामन, कुब्जक और हुडक), ६ सहनननामकर्म (वज्रऋपभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच, कीलक और असप्राप्तसृपाटिका); ८ स्पर्शनामकर्म (स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण, गुरु, लघु, कठोर और मृदु) ५ रसनामक (अम्ल, मधुर, कटु, तिक्त, कषायित), २ गन्धनामकर्म (सुगन्ध और दुर्गन्ध), ५ वर्णनामकर्म (कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत), ४ आनुपूर्व्यनामकर्म (नरकगत्यानुपूर्व्य, तिर्यग्गत्यानुपूर्व्य, मनुष्यगत्यानुपूर्व्य, देवगत्यानुपूर्व्य), १ अगुरुलधुनामकर्म, १ उपघातनामकम, १ परघातनामकर्म, १ आतपनामकर्म, १ उद्योतनामकर्म, १ उच्छ्वासनामकर्म, २ विहायोगतिनामकर्म (प्रशस्त और अप्रशस्त), १ प्रत्येकशरीरनामकर्म, १ वसनामकर्म. १ मुभगनामकम, १ सुस्वरनामकर्म, १ शुभनामकर्म, १ वादरनामकर्म, १ पर्याप्तिनामकर्म, १ स्थिरनामकर्म, १ प्रादेयनामकर्म, १ यशःकीतिनामकर्म, १ साधारणशरीरनामकर्म, १ स्थावरनामकर्म, १ दुर्भगनामकर्म, १ दुस्वरनामकर्म, १ अशुभनामकर्म, १ सूक्ष्मनामकर्म, १ अपर्याप्तिनामकर्म, · अस्थिरनामकर्म, १ अनादेयनामकर्म, १ अयश:कोतिनामकर्म और १ तीर्थङ्करनामकर्म ।
प्रश्न १०१-- नरकगतिनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-- जिस नामकर्मके उदयसे नरकभवके योग्य परिणाम हो जिस भावमे रहनेपर नरकमे उदय आने योग्य कर्मोका उदय होता है उसको नरकगतिनामकर्म कहते है।
प्रश्न १०२-तिर्यग्गतिनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस नामकर्मके उदयसे नियंगभवके योग्य परिणाम हो, जिस भावमे रहनेपर तियंचमे उदय पाने योग्य कर्मोका उदय होता रहता है उसे तिर्यग्गतिनाममै कहते है।
प्रश्न १०३- मनुष्यगतिनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस नामकर्मके उदयसे मनुष्यभवके योग्य परिणाम हो, जिस भावमे रहनेपर मनुष्यमे उदय याने योग्य कर्मों का उदय होता रहता है उसे मनुष्यगतिनामकर्म कहते है।
प्रश्न १०४-देवगतिनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस नामकर्मके उदयसे देवभवके योग्य परिणाम हो, जिस भावमे रहनेपर देवमे उदय आनेके योग्य कर्मोंका उदय होता रहता है उसे देवगतिनामकर्म कहते है।
प्रश्न १०५-जानिनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे प्राणियोके सदृश उत्पन्न हो उसे जातिनामकर्म कहते है। प्रश्न १०६- एकेन्द्रियजातिनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस कर्मके उदयसे केवल स्पर्शनइन्द्रिय वाला जीवन मिले उसे एकेन्द्रियनातिनामकर्म कहते है।
प्रश्न १०७- द्वीन्द्रियजातिनामकर्म किसे कहते है ?