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घोडा, कम
श्रप्रत्याख्यातावरणका शब्दार्थ यह है- प्र- ईपत्, प्रत्याख्यान
वाला । ईषत् माने आशिक त्यागको देशसयम अथवा सयमासयम कहते है ।
प्रश्न ५४ - प्रत्याख्यानावरण क्रोधवेदकमोहनीय कर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे धूलिरेखा याने गाडीके चक्केकी लकीरके सदृश अल्पकाल
तक ही न मिटने वाले क्रोधका वेदन हो जिससे सकल सयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण क्रोधवेदकमोहनीयकर्म कहते है ।
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द्रव्यसंग्रह - प्रश्नं तरी टीका त्यागका, यावरण- ढाकने
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प्रश्न ५५ -- प्रत्याख्यानावरण मानवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे लकडी याने काष्ठदण्डकी तरह कुछ शीघ्र मुड़ जाने वाले मानका वेदन हो जिससे सकल संयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण मानवेदकमोहनीयकर्म कहते है ।
प्रश्न ५६ - प्रत्याख्यानावरण मायावेदकमोहनीयकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे गौमूत्र की तरह अल्पवक्ररूप मायाका वेदन हो जिससे सकल सयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण मायावेदकमोहनीय कर्म कहते है । प्रश्न ५७ - प्रत्याख्यानावरण लोभवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे शरीरपर लगे हुए मलको तरह अल्प प्रयत्नसे छूट सकने वाली तृष्णाका वेदन हो जिससे सकल सयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण लोभवेदक मोहनीयकर्म कहते है ।
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प्रश्न ५८ - प्रत्याख्यानावरण कषायका काल कितना है ?
उत्तर--प्रत्याख्यानावरण कषायके सस्कारका काल अधिक से अधिक १५ दिन तक
प्रश्न ५६ - प्रत्याख्यानावरण कषायका कार्य क्या है ?
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उत्तर—प्रत्याख्यानावरण कषायका कार्य सकल सयम (महाव्रत ) प्रकट नही होने देना है । प्रत्याख्यानावरणका शब्दार्थ यह है- प्रत्याख्यान = त्याग (सर्वदेश व्रत ) का, प्रावरण = ढाकने वाला ।
प्रश्न ६०-- सज्वलनक्रोधवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ?
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उत्तर- जिस कर्मके उदयसे जलरेखाके सदृश शीघ्र मिट जाने वाले क्रोधका वेदन हो जिससे यथाख्यात चारित्र प्रकट नही हो सकता उसे सज्वलन क्रोधवेदक मोहनीय कर्म कहते है । प्रश्न ६१ - सज्वलनमानवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे बेंत ( पतली छडी) की नम्रताकी तरह शीघ्र मिट सके, ऐसे मानका वेदन हो जिससे यथाख्यात चारित्र प्रकट नही हो सकता उसे सज्वलनमानवेदक