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________________ १३४ घोडा, कम श्रप्रत्याख्यातावरणका शब्दार्थ यह है- प्र- ईपत्, प्रत्याख्यान वाला । ईषत् माने आशिक त्यागको देशसयम अथवा सयमासयम कहते है । प्रश्न ५४ - प्रत्याख्यानावरण क्रोधवेदकमोहनीय कर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे धूलिरेखा याने गाडीके चक्केकी लकीरके सदृश अल्पकाल तक ही न मिटने वाले क्रोधका वेदन हो जिससे सकल सयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण क्रोधवेदकमोहनीयकर्म कहते है । 1 द्रव्यसंग्रह - प्रश्नं तरी टीका त्यागका, यावरण- ढाकने す प्रश्न ५५ -- प्रत्याख्यानावरण मानवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे लकडी याने काष्ठदण्डकी तरह कुछ शीघ्र मुड़ जाने वाले मानका वेदन हो जिससे सकल संयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण मानवेदकमोहनीयकर्म कहते है । प्रश्न ५६ - प्रत्याख्यानावरण मायावेदकमोहनीयकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे गौमूत्र की तरह अल्पवक्ररूप मायाका वेदन हो जिससे सकल सयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण मायावेदकमोहनीय कर्म कहते है । प्रश्न ५७ - प्रत्याख्यानावरण लोभवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे शरीरपर लगे हुए मलको तरह अल्प प्रयत्नसे छूट सकने वाली तृष्णाका वेदन हो जिससे सकल सयम प्रकट नही हो सकता उसे प्रत्याख्यानावरण लोभवेदक मोहनीयकर्म कहते है । है । प्रश्न ५८ - प्रत्याख्यानावरण कषायका काल कितना है ? उत्तर--प्रत्याख्यानावरण कषायके सस्कारका काल अधिक से अधिक १५ दिन तक प्रश्न ५६ - प्रत्याख्यानावरण कषायका कार्य क्या है ? rat उत्तर—प्रत्याख्यानावरण कषायका कार्य सकल सयम (महाव्रत ) प्रकट नही होने देना है । प्रत्याख्यानावरणका शब्दार्थ यह है- प्रत्याख्यान = त्याग (सर्वदेश व्रत ) का, प्रावरण = ढाकने वाला । प्रश्न ६०-- सज्वलनक्रोधवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ? 71 उत्तर- जिस कर्मके उदयसे जलरेखाके सदृश शीघ्र मिट जाने वाले क्रोधका वेदन हो जिससे यथाख्यात चारित्र प्रकट नही हो सकता उसे सज्वलन क्रोधवेदक मोहनीय कर्म कहते है । प्रश्न ६१ - सज्वलनमानवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे बेंत ( पतली छडी) की नम्रताकी तरह शीघ्र मिट सके, ऐसे मानका वेदन हो जिससे यथाख्यात चारित्र प्रकट नही हो सकता उसे सज्वलनमानवेदक
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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