________________
गाथा ३१ मोहनीयकर्म कहते है।
प्रश्न ६२-- सज्वलनमायावेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर - जिस कर्मके उदयसे चमरी गौ के केशोपी तरह अत्यल्प वक्रता वाले मामाकषायका वेदन हो जिससे यथाख्यात चारित्र प्रकट नही हो सकता उसे सज्वलनमायावेदक मोहनीयकर्म कहते है।
प्रश्न ६३-सज्वलनलोभवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे हल्दीके रंगकी तरह शीघ्र नष्ट हो जाने वाली तृष्णाका वेदन हो जिससे यथाख्यात चारित्र प्रकट नही हो सकता उसे सज्वलनलोभवेदक मोहनीयकर्म
कहते है।
-प्रश्न ६४- संज्वलनकपायका काल कितना है ? उत्तर- सज्वलनकषायके सस्कारका काल अन्तर्मुहूर्त तक ही हो सकता है । प्रश्न ६५- सज्वलन कपायका कार्य क्या है ?
उत्तर- सज्वलनका शब्दार्थ है-स = सम्यक् प्रकारसे, ज्वलन = जो जले अर्थात् सज्वलनकषाय सकलसयमका नाश न करते हुए रहती है, यही इसका सम्यक्पना है और कषायके कारण यथाख्यात चारित्र प्रकट नही हो पाता।
प्रश्न ६६- यथाख्यात चारित्र किसे कहते है ?
उत्तर- कपायका अभाव होनेपर आत्माका यथा = जैसा कपायरहित शुद्ध स्वभाव है उम स्वरूपके ख्यात याने प्रकट हो जानेको यथाख्यात चारित्र कहते है।
प्रश्न ६७-हास्यवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिम कर्मके उदय होनेपर हास्यजनक राग हो उसे हास्यवेदक मोहनीयकर्म कहते है।
प्रश्न ६८- रतिवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे इष्ट विषयोमे रमे उसे रतिवेदक मोहनीयकर्म कहते है। प्रश्न ६६- अरतिवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे अनिष्ट विषयोमे अरुचि हो उसे अरतिवेदक मोहनीयकर्म पाहते है।
प्रश्न ७०-शोकवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे जीवके विपाद उत्पन्न हो उसे शोकवेदय मोहनो कर्म
। कहते है।
प्रश्न ७१-भयवेदक मोहनीयकर्म किसे कहते है ?