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________________ माथा ३१ १३३ तृष्णाका वेदन हो जिससे मिथ्यात्व पुष्ट होता रहे उसे अनन्तानुबन्धी लोभवेदकमोहनीयकर्म कहते है। प्रश्न ४५-- अनन्तानुबन्धी कषायका कितना काल है ? उत्तर- अनन्तानुबन्धी कषायके सस्कारको अवधि नहीं है। यह कई भवो तक साथ जा सकता है, अनन्त भवो तक साथ जा सकता है। प्रश्न ४६- अनन्तानुबन्धी कषायका कार्य क्या है ? उत्तर-सम्यक्त्व न होने देना और मिथ्यात्वको उत्पन्न करना, पुष्ट करना, दोनो अनन्तानुबन्धी कषायके कार्य है। प्रश्न ४७-अनन्तानुबन्धी शब्दका निरुक्त्यर्थ क्या है ? उत्तर-जो अनन्त भवो तक भी सम्बन्ध रखे उसे अनन्तानुवन्धी कहते है। प्रश्न ४८- अप्रत्याख्यानावरण क्रोधवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे हलरेखासदृश (पृथ्वीमे हलके चलनेसे होने वाले ग्ड्ढे की तरह) कुछ बहुत काल तक न मिटने वाले क्रोधका वेदन हो जिससे सयमासयम प्रकट न हो सकता उसको अप्रत्याख्यानावरण क्रोधवेदकमोहनीयकर्म कहते है। प्रश्न ४६- अप्रत्याख्यानावरण मानवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे हड्डीकी तरह कुछ कठिनतासे मुडने वाले मानका वेदन हो जिससे सयमामयम प्रकट नहीं हो सकता उसको अप्रत्याख्यानावरण मानवेदकमोहनीयकर्म कहते है। प्रश्न ५०-अप्रत्याख्यानावरण मायावेदकमोहनीयकर्म किसे कहते है। उत्तर- जिस कर्मके उदयमे मेढाके सीगकी कुटिलताकी तरह वक्र मायाका वेदन करे जिससे संयमासयम प्रकट नही हो सकता उसे अप्रत्याख्यानावरण मायावेदकमोहनीयकर्म कहते प्रश्न ५१-अप्रत्याख्यानावरण लोभवेदकमोहनीयकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे चकेके प्रोगनके रगको रगाईकी तरह कुछ बहुत काल तक न छूटने वाली तृष्णाका वेदन हो जिससे सयमासयम प्रकट नही हो सकता उसे अप्रत्याख्यानावरण लोभवेदकमोहनीयकर्म कहते है। प्रश्न ५.- अपत्याख्यानावरण कपायका काल कितना है ? उत्तर-अप्रत्याख्यानावरण कषायका संस्कार अधिकसे अधिक ६ माह तक रहता है। प्रिश्न ५३-- अप्रत्याख्यानावरण कषायका कार्य क्या है ? उत्तर-अप्रत्याख्यानवरण कषायका कार्य देश सयमको प्रकट न होने देना है।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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