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विशेष रूप से वर्णन करते है
द्रव्यसंग्रह- नोत्तरी टीका
नाणावररणादीरण जोग्ग ज पुग्गल समासवदि । दव्वासवो सो प्रयभेो जिरणक्खादो ॥ ३१ ॥
अन्वय - णाणावररणादीरण जोग्ग ज पुग्गल समासवदि स दव्वासवो प्रणेयभेश्रो श्रो
जिक्खादो ।
अर्थ -- ज्ञानावरणादि कर्मरूपसे परिणत होने योग्य जो पुद्गल आता है वह अनेक भेद वाला द्रव्यासव जानना चाहिये, ऐसा श्री जिनेन्द्रदेवने कहा है ।
प्रश्न १- कौनसे पुद्गल कर्मरूपमे परिणत होनेके योग्य होते है ?
उत्तर - कार्माणवर्गणा नामक स्वन्व कर्मरूपसे परिणत होने के योग्य होते हैं । प्रश्न २ - कार्मारण वर्गणायें कहाँ मौजूद रहती है ?
( उत्तर - कार्मारण बर्गरणाये समस्त लोकमे ठसाठस व्याप्त है । लोकके एक-एक प्रदेशपर अनन्त कार्मारणरणाये है ।
- प्रश्न ३ – उन कार्मावगंगाओका कर्मरूप होनेसे पहिले भी जीवके साथ कोई सम्बघ है या नही
?
उत्तर - कुछ कार्मारणवर्गणात्रोका कर्मरूप होनेसे पहिले भी जीवके साथ एकक्षेत्रावगाह सम्बन्ध रहता है, उन्हे विसोपचय कहा जाता है। सभी ससारी जीवोके विस्रसोपचय बना रहता है । स्वाया या उसे समय योग्यला
प्रश्न ४ - क्या कुछ कार्मारणवर्गरणायें विस्रसोपचयसे अलग भी है ?
उत्तर - कुछ कार्मारणवर्गगाये विस्रसोपचयसे अलग भी है । ये भी कभी विस्रसोपचय मे शामिल हो जाती है ।
प्रश्न ५ - क्या विखसोपचय वाले स्वन्ध ही कर्मरूप परिणत होते हैं या अन्य कार्भा - वर्गणायें भी कर्मरूप परिणत हो जाते है ?
मानिकपक उत्तर- विस्रसोपचयके कार्मारण स्कन्ध ही कर्मरूप परिणत होते है । अन्य कामणि
हुवा
वर्गेरणाये भी विस्रसोपचयरूप बनकर कर्मरूप परिणत हो जाती है ।
प्रश्न ६ - कर्म कितने प्रकारके है ?
उत्तर - कर्मके मूलमे २ प्रकार है- (१) घातियाकर्म और ( २ ) अघातिया कर्म | प्रश्न ७-- - घातियाकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जो कर्म श्रात्माके ज्ञानादि अनुजीवी गुणोके घातनेमे निमित्त हो उन्हे घातिया कर्म कहते है ।
प्रश्न ८ --- अनुजीवी गुण किसे कहते है ?