________________
माथा २३
११५
उत्तर- बाह्य तत्त्वके बिल्कुल छूट जानेको मोक्ष कहते है । प्रश्न १०- क्या जीवविशेष और अजीवविशेष बिल्कुल स्वतन्त्र है ?
उत्तर- ये जीवके विशेष अजीवके विशेषके निमित्तसे हैं और ये अजीवके विशेष जीव के विशेषके निमित्तसे है। अब उक्त विशेषोमे से जीवास्रव और अजीवास्रवका स्वरूप कहते है----
मासवदि जेण कम्म परिणामेणप्पणो स विण्णेप्रो ।
भावासवो जिणत्तो कम्मासवण परो होदि ॥२६॥ अन्वय-- अप्पणो जेण परिणामेण कम्म आसवदि स जिणुत्तो भावासवो विण्णेयो, कम्मासवरणं परो होदि ।।
अर्थ-- आत्माके जिस परिणामसे कर्म आता है वह जिनेन्द्रदेवके द्वारा कहा हुआ भावास्रव जानना चाहिये और जो कर्मोंका माना है उसे द्रव्यास्रव जानना चाहिये ।
प्रश्न १-- किन परिणामोसे कर्म आते है ?
उत्तर-- शुद्ध आत्मतत्त्वके आश्रयके विपरीत जो भी परिणाम है वे पुद्गल कर्मोंके आस्रवके निमित्त कारण है।
प्रश्न २-वे विपरीत परिणाम कोन है जिनके निमित्तसे कर्मोका प्रास्रव होता है ?
उत्तर- पांच इन्द्रियोके विषय भोगनेके परिणाम क्रोध, मान, माया, मात्सर्य, लोभ, परवस्तुको अपना माननेका भाव, परपदार्थोके जाननेका लक्ष्य आदि विपरीत परिणाम है।
प्रश्न ३-जीवास्रव किसे कहते है ?
उत्तर- भावास्रव जीवास्रवका ही अपर नाम है । जिन भावोका नाम भावास्रव है वे जीवके ही परिणमन है, अतः वे जीवास्रव कहलाते है अर्थात् आत्माके जिन परिणामोसे कर्म आते है उन्हें भावास्रव या जीवास्रव कहते है।
प्रश्न ४- प्रात्मामे भावास्रव क्यो होते है ? उत्तर- पूर्वबद्ध कर्मोके उदयको निमित्त पाकर प्रात्मामे भावास्रव होते है। प्रश्न ५- भावास्रव और द्रव्यास्रवमे कारण कौन है और कार्य कौन है ?
उत्तर- वर्तमान भावास्रव नवीन द्रव्यास्रवका कारण है, नवीन द्रव्यास्रवका वर्तमान भावास्रवका कार्य है।
प्रश्न ६–वर्तमान भावास्रवका कारण कौन है ? उत्तर- वर्तमान भावास्रवका परम्पराकारण पूर्वका द्रव्यास्रव है । प्रश्न ७- एक द्रव्यका दूसरे द्रव्यके साथ कार्यकारण भाव कैसे हो सकता है ? उत्तर-जीवास्रव (भावास्रव) जीवका परिणमन है। अजीवास्रव (द्रव्यास्रव) अजीव