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द्रव्यसंग्रह-प्नोत्तरी टीका
तृतीय अधिकार प्रास्रवबधणसवरणिज्जरमोक्खो सपुण्णपावा जे ।
जीवाजीवविसेसा तेत्रि समासेण पभणामो ॥२८॥ अन्वय-जीवाजीवविसेसा जे सपुण्णपावा आसवबधणसवरणिज्जरमोक्खो तेवि समासेण पभणामो।
अर्थ-जीव और अजीवके विशेष (भेद) जो पुण्य, पाप, प्रास्रव, बध, सवर, निर्जरा मोक्ष है उनको भी सक्षेपसे कहते है
प्रश्न १-- ये प्रास्रवादिक जीव अजीवके क्या द्रव्याथिक दृष्टिसे भेद है ?
उत्तर- ये आस्रवादिक जोव और अजीवके पर्याय है । इसी कारण ये सातो दो-दो प्रकारके हो जाते है -(१) जीवपुण्य, (२) अजीवपुण्य । (१) जीवपाप, (२) अजीवपाप । (१) जीवास्रव, (२) अनीवास्रव 1 (१) जीवबध, (२) प्रजोवबंध । (१) जीवसवर, (२) अजीवसवर । (१) जीवनिर्जरा, (२) अजीवनिर्जरा । (१) जीवमोक्ष, (२) अजीवमोक्ष ।
प्रश्न २-- इनका स्वरूप क्या है ?
उत्तर-इन सब विशेषोका स्वरूप विशेषरूपसे आगे गाथावोमे कहा जायगा । इनका सामान्यस्वरूप यहाँ जान लेना चाहिये ।
प्रश्न ३-पुण्य किसे कहते है ? उत्तर-शुभ प्रास्रवको पुण्य कहते है। प्रश्न ४- पाप किसे कहते है ? उत्तर-अशुभ प्रास्रवको पाप कहते है। प्रश्न ५- पास्रव किसे कहते है ? उत्तर-बाह्य तत्त्वके आनेको प्रास्रव कहते है । प्रश्न ६-बन्ध किसे कहते है ? उत्तर- बधनेको बन्ध कहते है। प्रश्न ७-सवर किसे कहते है ? उत्तर- बाह्य तत्त्वका प्राना रुक जाना सवर है । प्रश्न -निर्जरा किसे कहते है ? उत्तर-बाह्य तत्त्वके झड़ जानेको निर्जरा कहते है। प्रश्न 8-मोक्ष किसे कहते है ?