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गाथा २७ ओर अनन्त प्रदेशोमे आकाश ही आकाश है ।
प्रश्न १०.- आकाशमे अनत प्रदेश है, यह कैसे जाना जाय ?
उत्तर-आकाशके समस्त प्रदेशोसे भी अनन्तगुणे अविभागप्रतिच्छेद वाले केवलज्ञान मे यह जाना गया और दिव्यध्वनिसे प्रकट हुआ । अतः अनत प्रदेश है, यह नि:सदेह प्रतीतिमे लाना चाहिये।
प्रश्न ११-आकाशके अनन्त प्रदेशोमे कोई युक्ति भी है ?
उत्तर-कल्पना करो कि किसी जगह आकाशका अन्त आ गया तो वहीं कोई ठोस चीज आ गई कि पोल है । यदि ठोस चीज आ गई तो उसके बाद पोल ही होगी। यदि पोल है तो पोलसे तो आकाश सकेतित किया जाता है । आकाशका कही भी अत नही पा सकता। इसलिये आकाशके अनन्त प्रदेश युक्तिसिद्ध भी हो जाते है ।
प्रश्न १२- प्रदेशका क्या आकार है ?
उत्तर-वस्तुतः तो प्रदेश ही क्या समस्त आकाश निराकार है, फिर जिस दृष्टिसे प्रदेश जाना गया उस दृष्टिसे विचारनेपर प्रदेश परमाणु के 'आकार वाला सिद्ध होता है। परमारण यद्यपि निरवयव है तथापि उसमे अन्य परमाणुवोके सयोगसे स्कन्धत्व हो सकता है, श्रत अवयव है। परमाणु षट्कोण है । ऊपर नीचे व चारो दिशावोमे सयुक्त परमाणवोका। छिद्ररहित श्लेष होता है । उस परमाणुके सदृश आकाश प्रदेश भी षट्कोण है।
इति श्री पूज्य मुनिवर नेमिचन्द्र सैद्धान्तिदेव द्वारा विरचित द्रव्यसग्रहकी २७ गाथावों मे चार अधिकारो द्वारा षद्रव्य पञ्च अस्तिकायको वर्णन करने वाले प्रथम व द्वितीय अधिकार समाप्त हुए।
इसकी प्रश्नोत्तरी टीका प्रोफेसर श्री लक्ष्मीचन्द्र जी एम एस-सी. जबलपुर निवासी के (जिनसे मैने इङ्गलिशका अध्ययन किया) धार्मिक मननके हेतु हुई।
-मनोहर वर्णी "सहजानन्द"
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