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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका गिरे तो चौथे गुणस्थान तक ही गिर सकता है, क्योकि इसके क्षायिक सम्यक्त्व है। क्षायिक सम्यक्त्व कभी नष्ट नहीं होता।
उपशान्त कषाय गुणस्थान वालेका यदि मरण हो तो मरण समयमें ही एकदम चौथा गुणस्थान हो जाता है।
प्रश्न २५-उपशमश्रेणीके अन्य गुणस्थानोमे भरण होता है अथवा नही ?
उत्तर-उपशमश्रेणीके अन्य गुणस्थानोमे भी अर्थात १०व, वें, वें गुणस्थानमे भी मरण हो सकता है। यदि मरण हो तो उस गुणस्थानके अनन्तर ही मरण समयमे ही चौथा गुणस्थान हो जाता है।
प्रश्न २६--उपशान्तकपाय गुणस्थान कितने प्रकारका है ? उत्तर-उपशान्तकषाय गुणस्थान एक ही प्रकारका है । इसमे उपशमक ही होते है। प्रश्न ३०-क्षीणकषाय गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर-चारित्रमोहनीयकी सर्व प्रकृतियोके क्षय हो जानेसे जहा यथाख्यात चारित्र हो जाता है, उस अकषाय निर्मल परिणामको क्षीणकषाय गुणस्थान कहते है।
प्रश्न ३१-- क्षीणकषाय गुणस्थानमे दर्शनमोहकी तीन व अनन्तानुबधीकी चार-इन सात प्रकृतियोकी क्या परिस्थिति है ?
उत्तर-क्षायिक सम्यग्दृष्टि ही क्षपकश्रेणी चढता है और क्षायिक सम्यक्त्व चौथे गुणस्थानसे सातवें गुणस्थान तक किसी भी गुणस्थानमे उत्पन्न हो जाता है वही इन सात,प्रकृतियोका क्षय हो गया था । सो यहां भी ७ प्रकृतियोका अत्यन्त प्रभाव है।
प्रपन ३२-क्षीणकषाय गुणस्थान कितने प्रकारका है ?
उत्तर-क्षीणकषाय गुणस्थान एक प्रकारका है। इसमे क्षपक ही होते है और सयोगकेवली, अयोगकेवली भी केवल क्षपक ही होते है । इस गुणस्थानके अन्त समयमे ज्ञानावरणको ५, दर्शनावरणको ६ (४ दर्शनावरणकी, निद्रा व प्रचला), अतरायकी ५-- इस प्रकार १६ प्रकृतियोका क्षय हो जाता है ।।
प्रश्न ३३-~-इस गुणस्थानमे स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला-इन तीन दशंनावरणोकी क्या परिस्थिति रहती है ?
उत्तर- इन तीन प्रकृतियोका तो क्षएकने अनिवृत्तिकरणके पहिले भागमे ही क्षय कर दिया था, सो वहीसे इनका अत्यन्त प्रभाव है।
प्रश्न ३४- सयोगकेवली किन्हे कहते है ?
उत्तर- चारो घातियाकर्मोके क्षय हो जानेसे जहाँ केवलज्ञान, केबलदर्शन, अनन्तसुख व अनन्तवीर्य प्रकट हो जाते है उन्हे केवली कहते है और इनके जब तक शरीर और योम