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गाया २४
उत्तर-जिसमे अनेक अन्त याने धर्म हो उसे अनेकान्त कहते है । इस सिद्धान्तका) नाम भी अनेकान्त है। इसको प्रकट करनेकी पद्धति स्याद्वाद है।
प्रश्न - स्याद्वाद किसे कहते है ?
उत्तर-- अनेकान्तात्मक वस्तुके धर्मोको स्यात् अर्थात् अपेक्षासे वाद याने कहना स्याद्वाद है । स्याद्वादका दूसरा नाम अपेक्षावाद भी है।
प्रश्न १०- सप्रतिपक्ष एक धर्मको स्याद्वाद कितने प्रकारसे कह सकता है ?
उत्तर- सप्रतिपक्ष एक धर्मको स्याद्वाद सात प्रकारसे कह सकता है । उस धर्मके विषयमे अस्ति, नास्ति, प्रवक्तव्य, अस्ति प्रवक्तव्य, नास्ति प्रवक्तव्य, अस्ति नास्ति, अस्ति नास्ति वक्तव्य । इसे नयसप्तभङ्गी कहते है।
प्रश्न ११- इन सातो भङ्गोका क्या भाव है ?
उत्तर-इन भङ्गोको एक धर्मका प्राश्रय करके घटावें । जैसे नित्य धर्मका प्रकरण बनाकर देखा तो वस्तु स्यात् नित्य है, वस्तु स्यात् नित्य नही (अनित्य) है, वस्तु स्यात् अवक्तव्य है, वस्तु स्यात् नित्य प्रवक्तव्य है, वस्तु स्यात् अनित्य प्रवक्तव्य है, वस्तु स्यात् नित्य और अनित्य है, वस्तु स्यात् नित्य अनित्य प्रवक्तव्य है ।।
प्रश्न १२- इन भङ्गोकी अपेक्षाये क्या-क्या है ? Dr उत्तर-वस्तु द्रव्यदृष्टिसे नित्य है, पर्यायदृष्टिसे अनित्य है, परमार्थसे युगपदृष्टि से प्रवक्तव्य है, द्रव्य व युगपदृष्टिसे नित्य प्रवक्तव्य है, पर्याय व युगपदृष्टिसे अनित्य प्रवक्तव्य है, द्रव्य व पर्यायदृष्टिसे नित्य अनित्य है, द्रव्य व पर्यायदृष्टि एवं युगपदृष्टि से नित्य अनित्य प्रवक्तव्य है।
प्रश्न १३- स्यात् शब्दका अर्थ क्या "शायद' नही होता ?
उत्तर--स्यात् शब्दका अर्थ "शायद होता ही नही, स्यात् शब्द अपेक्षा अर्थमे निपातित है।
प्रश्न १४-- अस्तिकाय ५ ही क्यो होते हैं ?
उत्तर-अस्तिकाय सम्बन्धी सब विवरण मागे २४वी गाथामे किया जा रहा है, उससे जानना चाहिये।
इस प्रकार प्रव्यजाति और अस्तिकाय जातिको संख्या बताकर अब अस्तिकायका निरुक्त्यर्थ सहित विवरण करते है
संति जदो तेणेदे अत्थित्ति भणंति जिणवरा जम्हा ।
काया इव वहुदेसा तम्हा काया य अत्थिकाया य ॥२४॥ अन्वय-जदो एदे संति तेण अत्यित्ति जिरणवरा भणति, जम्हा काया इव वहदेसा