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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका व्यय होता रहता है।
प्रश्न ४६---क्या सिद्धभगवानमे स्थूलरूपसे भी कोई उत्पाद व्यय होता है ?
उत्तर-व्यञ्जनपर्यायकी अपेक्षासे स्थूल उत्पादव्यय भी है अर्थात् संसारपर्यायका तो विनाश हुआ और सिद्धपर्यायका उत्पाद हुमा । यहाँ नीवद्रव्य ध्रौव्यरूपसे रहा ।
प्रश्न ५०-- सिद्धप्रभुके स्वरूप जाननेसे हमे क्या शिक्षा लेनी चाहिये?
उत्तर- अनन्त आनन्द प्रात्यन्तिक शुद्ध सिद्धपर्यायकी निस स्वभावके साथ एकता हुई है वह स्वभाव मुझमे भी अनादिसिद्ध है। इस स्वभावकी भावना, उपासना और इसी स्वभावके अवलम्बनसे शुद्ध निर्मल सिद्धपर्याय प्रकट होती है । एतदर्थ निज सहनसिद्ध चतुन्यस्वभावमे अपनी वर्तमान ज्ञान पर्याय जोड़नी चाहिये ।
॥ इस प्रकार जीवतत्त्वके प्ररूपणमें प्रथम अधिकार समाप्त हुआ।