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गाया १४
उत्तर- यह परिणमने वाले पदार्थकी योग्यता है कि यह कितने दूरवर्ती और कितने तेजोमय पदार्थको निमित्त पाकर प्रकाशरूप परिणमे । पदार्थ अपनी योग्यताके अनुसार प्रकाशपरिणत होते है। तभी तो काच विशेष प्रकाशरूप परिणमता है, दीवार आदि साधारण प्रकाशपरिणत होते है।
प्रश्न ४१-शरीरसे मुक्त होनेपर प्रात्माका अवस्थान कहाँ रहता है ?
उत्तर- शरीरसे मुक्त होनेपर इस परमात्माका अवस्थान लोकके शिखरपर हो जाता है व्यय सकपE
प्रश्न ४२- जहाँ शरीरसे मुक्त हुए वही अवस्थान क्यो नही रहता ?
उत्तर-आत्माका ऊर्ध्वगमनस्वभाव होनेसे प्रात्मा देहमुक्त होते ही एक. ममयमे सबसे ऊपर चला जाता है। ..प्रश्न ४३- सिद्धप्रभु और ऊपर चलते ही क्यो नही जाते ?
उत्तर-- गमनक्रिमके निमित्तभूत धर्मास्तिकायका लोकके अन्त तक ही सद्भाव है अतः वहाँ तक ही गमन है। । प्रश्न ४४-तब आत्माकी क्रिया क्या पराधीन नही हुई ?
उत्तर- नही, प्रात्मा अपनी क्रियासे ही क्रियावान होता है, किन्तु ऐसा ही सहज निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है कि धर्मास्तिकायको निमित्त पाकर प्रात्मा अपनी स्वतन्त्र क्रिया से क्रियावान हुया । विभिन्नागि " है.
प्रश्न ४५-सिद्धप्रभु सिद्धावस्थामे कब तक रहते है ?
उत्तर-सिद्धपर्याय नित्य है अर्थात् सदैव अनन्तानन्त काल तक रहेगी। अतः सिद्ध नित्य हैं।
प्रश्न ४६-सिद्धपर्याय नित्य क्यो है पर्याय तो अनित्य होती?
उत्तर-सिद्धपर्याय स्वाभाविक और अनैमित्तिक है इसलिये सदा रहती है। सूक्ष्मदृष्टि अथवा वस्तुस्वभावसे प्रतिसमय नया नया परिणमन होता ही है, किन्तु वह अनैमित्तिक और स्वाभाविक होनेसे पूर्ण समान ही होता है । अतः सिद्धपर्यायको नित्य कहा ।
प्रश्न ४७-नया-नयाँ परिणमन सिद्धोंमे क्या होता है ?
उत्तर- जैसे प्राधा घण्टा तक विजली जली तो वहाँ प्रतिक्षण नयी-नयी विजली हुई । लगातार होनेसे व समान प्रकाश होनेसे उसमे अन्तर मानूम नहीं होता। वैसे सिद्धोके प्रतिसमयके परिणमनमे अन्तर नहीं होता। प्रतिसमय शक्तिका उपयोग तो हो ही रहा है।
प्रश्न ४८- प्रतिसमय उत्पाद व्यय होनेका कारण क्या है ? उत्तर- अगुस्लघु गुणके ६ वृद्धिस्थानोमे व ६ हानिरथानोमे परिणमन होनेसे उत्पाद
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