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गाथा १८
६५ मुसाफिरोंके ठहरनेमे छाया सहकारी कारण है । वह अधर्मद्रव्य गमन करते हुये जीव पुद्गलो को नही ठहराता है।
प्रश्न १-- ठहरनेसे यहां क्या तात्पर्य है ? उत्तर- गमन करके ठहरोना यहाँ ठहरनेका तात्पर्य है । प्रश्न २-- इस प्रकारका ठहरना कितने द्रव्योमे होता?
उत्तर-यह स्थिति केवल जीव और पुद्गल इन दो द्रव्योमे होती क्योकि गमनक्रिया भी इन हो दो द्रव्योमे पाई जाती है ।
प्रश्न - अधर्मद्रव्य अमूर्त है वह स्थितिमे कैसे कारण बनता ?
उत्तर-जैसे सिद्धभगवान अमूर्त होकर भी "सिद्ध हू, शुद्ध हू, अनन्तज्ञानादिसम्पन्न हूं" इत्यादि सिद्धभक्तिमे ठहरते हुए भव्य जीवोके स्वस्थितिमे बहिरङ्ग सहकारी कारण होते , है वैसे अमूर्त होकर भी अधर्मद्रव्य ठहरते हुए जीव, पुद्गलोके ठहरनेमे सहकारी कारण होता
प्रश्न ४- अधर्मद्रव्य अप्रेरक है, वह कैसे जाते हुये जीव पुद्गलोको ठहरा सकता? ___ उत्तर-जैसे जाते हुये मुसाफिर वटछायाको निमित्त पाकर अपने ही भावसे और कारणसे ठहर जाते है वैसे जाते हुये जीव और पुद्गल अधर्मद्रव्यको निमित्त पाकर अपने ही उपादानकारणसे ठहर जाते है । छाया मुसाफिरोको जबरदस्ती ठहराता नही है । अधर्मद्रव्य भी किसीको जबरदस्ती ठहराता नही है ।
प्रश्न ५-अधर्मद्रव्यकी अन्य विशेपताये क्या है ?
उत्तर-- अधर्मद्रव्यका असाधारण लक्षण स्थितिहेतुत्व है । शेष सभी विशेपतायें धर्मद्रव्यकी तरह है अर्थात् अधर्मद्रव्य एक है, लोकव्यापी है, अनन्तगुणात्मक है, निष्क्रिय है, परिणमनशील है, नित्य है आदि ।
प्रश्न ६-अधर्मद्रव्यमे और अधर्ममे क्या अन्तर है ?
उत्तर-अधर्मद्रव्य एक स्वतन्त्र द्रव्य है । जो जीव व पुद्गलके ठहरनेमे सहकारी उदासीन कारण है और अधर्म प्रात्मस्वभावसे अन्य भावोको आत्मा समझने व अनात्मामे उपयोग लगानेको कहते है।
प्रश्न ७-क्या अधर्मास्तिकाय बिना जीव, पुद्गल स्थित हो सकते है ?
उत्तर-नही, जैसे धर्मास्तिकाय बिना जीव, पुद्गल गति नही कर सकते वैसे अधर्मास्तिकाय विना जीव, पुद्गल स्थित नही हो सकते।
प्रश्न -यदि ऐसा है तो धर्म, अधर्मद्रव्य प्रेरक व मुख्य कारण माने जाने चाहियें ? उत्तर-धर्म, अधर्मद्रव्य गति, स्थितिके प्रेरक नही है और न ये मुख्य कारण है,