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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका जीव पुद्गलोके गमनमे कारण क्यो न हो जाय ?
उत्तर--सभी साक्षात् निमित्तकारण एक क्षेत्रस्थित होते है । अतः धर्मद्रव्य लोकलोकव्यापी ही जीव पुद्गलोके गमनमे कारण है।
प्रश्न २२-कुम्भकार तो भिन्न क्षेत्रमे रहकर भी घडेका निमित्त कारण है ?
उत्तर-कुम्भकार मिट्टीके परिणमनका साक्षात् निमित्तकारण नहीं है किन्नु आश्रयभूत निमित्तकारण है।
प्रश्न २३-साक्षात् निमित्तकारण किसे कहते है ?
उत्तर-अन्तररहित अन्वयव्यतिरेकी कारणको साक्षात् निमित्तकारण कहते है । जैसे- सब द्रव्योके परिणमन सामान्यका साक्षात् निमित्तकारण कालद्रव्य है, जीवके विभाव का निमित्तकारण धर्मद्रव्य है, जीव पुद्गलकी गतिका निमित्तकारण धर्मद्रव्य है. जीव पुद्गल की गतिनिवृत्तिका निमित्तकारण अधमंद्रव्य है प्रादि ।
प्रश्न २४- धर्मद्रव्य और धर्ममे क्या अन्तर है ?
उत्तर- धर्मद्रव्य तो एक स्वतन्त्र द्रव्य है जो गतिमे उदासीन निमित्त कारण है और धर्म आत्माके स्वभावको व आत्मस्वभावके अवलम्बनसे प्रकट होने वाली परिणतिको कहते है।
प्रश्न २५-कारण तो प्रेरक ही होते है, फिर धर्मद्रव्यको उदासीन निमित्त कारण क्यो कहा? 1. उत्तर- कोई भी कार्य किसी अन्यकी प्रेरणासे...नही होता, किन्तु परिणमने वाला
उपादान कारण अपनी योग्यताके कारण अनुकूल निमित्तका सन्निधान पाकर स्वय परिण-" मता है।
प्रश्न २५-इस विषयका कोई दृष्टात है क्या ?
उत्तर- जैसे भव्य जीव निजशुद्धात्माकी अनुभूतिरूप निश्चय धर्मके कारण उत्तम संहनन, विशिष्ट तथा पुण्यरूप धर्मका सन्निधान रूप निमित्त कारण पाकर सिद्धगतिरूप परिणमते है । जैसे मत्स्यके चलनेमे जल उदासीन निमित्त कारण है । वैसे जीव पुद्गलोके चलने मे धर्मद्रव्य उदासीन निमित्त कारण है। इस प्रकार धर्मद्रव्यका वर्णन करके अब इस गाथामे अधर्मद्रव्यका वर्णन करते है
ठाण जुदाण अधम्मो पुग्गल जीवाण ठाणसह्यारी ।
छाया जह पहियाण गच्छंता व सो धरई ॥१८॥ अन्वय- ठाणजुदाण पुग्गल जीवाण ठाणसहयारी अधम्मो । जह पहियारण छाया । सो गच्छता व धरई।
अर्थ- ठहरते हुये पुद्गल और जीवोके ठहरनेमे सहकारी कारण अधर्मद्रव्य है। जैसे