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गाथा १४
७७ उत्तर-प्रखण्डशक्तिमय निज कारणसमयसारके ध्यानमें निज सामर्थ्य का उपयोग किया और स्वरूपसे विचलित करनेका कोई 'अन्तरङ्ग या बहिरङ्ग कारण उपस्थित हुआ तो उस समय परमधर्यका अवलम्बन लिया व स्वरूपसे चलित नहीं हुए । इसके फलस्वरूप यह अनन्तवीर्य प्रकट हुआ।
प्रश्न २६–अनन्तसुख किसे कहते है ? ___उत्तर-- आकुलताके अत्यन्त प्रभाव होनेको अनन्तसुख कहते है । इसका अपर नाम अव्याबाध भी है। सब ruri
प्रश्न २७- अनन्तसुख कैसे प्रकट हुआ ?
उत्तर-निज सहजशुद्ध प्रात्मतत्त्वके सवेदनसे प्रकट हुये आनन्दानुभवके फलस्वरूप यह अनन्तसुख प्रकट हुप्रा ।
प्रश्न २८-अवगाहनत्व किसे कहते है ?
उत्तर- एक सिद्धके क्षेत्रमे अनन्तसिद्धोका भी अवगाहन हो जावे, इस सामर्थ्यको अवगाहनत्व कहते है।
प्रश्न २६- यह अवगाहनत्व कैसे प्रकट हुआ ?
उत्तर-अमूर्त निराबाध निज चैतन्यस्वभावकी पहिले भावना, उपासना की जिसके फल स्वरूप यह अवगाहनत्व प्रकट हुआ ।
प्रश्न ३०-सूक्ष्मत्व किसे कहते है ? उत्तर-केवलज्ञान द्वारा ही गम्य अमूर्त प्रदेशात्मक होनेको सूक्ष्मत्व कहते है। प्रश्न ३१- यह सूक्ष्मत्व कैसे प्रकट हुआ ?
उत्तर-- द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्मोंसे रहित निज शुद्धात्मतत्त्वके श्रद्धान, ज्ञान, आचरणसे यह सूक्ष्मत्व प्रकट हुआ।
प्रश्न ३२-- प्रगुरुलघुत्व किसे कहते है ?
उत्तर-'जिससे अन्य न कोई गुरु हो और इस सिद्धावस्थामे रहने वाले अनन्त जीवों से कोई न लघु हो ऐसी साम्य अवस्थाके प्राप्त होनेको प्रगुरुलघुत्व कहते है अथवा न ऐसे | भारी हो जायें कि लोहपिण्डवत् नीचे पतन हो जाय और न ऐसे लघु हो जायें कि पाकके तूलकी तरह भ्रमण ही होता रहे, ऐसे विकासको अगुरुलघुत्व कहते है ।
प्रश्न ३३- यह अगुरुलघुत्व कैसे प्रकट हुआ ?
उत्तर- सर्व जीवोमे एकस्वरूप निज चैतन्य सामान्यस्वरूपकी अभेद उपासना की, उसके फलस्वरूप यह अगुरुलघुत्व प्रकट हुआ ।
प्रश्न ३४- ये आठो गुण त्रैकालिक तो नहीं है, ये किसी समयसे ही प्रकट हये,