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गाथा १३
(२) दूसरे भागमे अप्रत्याख्यानावरण ४ व प्रत्याख्यानावरण ४, इन ८ प्रकृतियोका उपशम या क्षय होता है।
(३) तीसरे भागमे नपुसकवेदका उपशम या क्षय होता है। (४) चौथे भागमे स्त्रीवेदका उपशम या क्षय होता है ।
(५) पांचवे भागमें हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा----इन ६ नोकषायोका उपशम या क्षय होता है।
(६) छठे भागमे पुरुषवेदका उपशम या क्षय हो जाता है । (७) सातवें भागमे सज्वलन क्रोधका उपशम या क्षय हो जाता है। (८) पाठवें भागमे संज्वलन मानका उपशम या क्षय हो जाता है । (९) नवें भागमे सज्वलन मायाका उपशम या क्षय हो जाता है ।
इस प्रकार आठ बारमे १० चारित्रमोहनीय प्रकृतियोका उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमे उपशम होता है और क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमे क्षय हो जाता है ।
प्रश्न २४-सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान किसे कहते है ?
उत्तर-- जहा केवल संज्वलन सूक्ष्म लोभके उदयके कारण सूक्ष्म लोभ रह जाता है, उसके भी दूर करनेके लिये सूक्ष्मसाम्पराय सयम होता है, उसे सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान कहते है । इस गुणस्थानके अन्तमे संज्वलन सूक्ष्मलोभका उपशमक सूक्ष्मसाम्परायके उपशम हो जाता है किन्तु क्षपक सूक्ष्मसाम्परायके क्षय हो जाता है।
प्रश्न २५-उपशान्तकषाय गुणस्थान किसे कहते है ?
उत्तर- जहा चारित्रमोहनीयकी २१ प्रकृतियोके उपशान्त हो जानेसे यथाख्यातचारित्र हो जाता है उस अकषाय निर्मलपरिणमनको उपशान्तकपाय गुणस्थान कहते है।
प्रश्न २६- उपशान्तकषाय गुणस्थानमे दर्शनमोहनीयको ३ व चारित्रमोहनीयकी ४ अनन्तानुबंधी क्रोध मान माया लोभ इन ४ प्रकृतियोकी क्या परिस्थिति होती है ?
उत्तर-द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि या क्षायिक सम्यग्दृष्टि ही उपशमश्रेणीमे चढता है सो द्वितीयोपशमसम्यक्त्व सातवे गुणस्थानमे हो जाता है । यहा इन सात प्रकृतियोंका उपशम कर दिया था, वही उपशम यहां पर है । क्षायिक सम्यग्दृष्टिने चौथेसे ७ वें तक किसी गुणस्थान मे इन सात प्रकृतियोका क्षय कर दिया था, सो सात प्रकृतियोका यहां सर्वथा अभाव है।
प्रश्न २७-उपशान्तकषाय गुणस्थानसे किस प्रकार नीचेके गुणस्थानोमे आता है ?
उत्तर-द्वितीयोपशमसम्यग्दृष्टि उपशान्तकषाय तो क्रमशः १० वे, ६ वे, ८ वे, ७ वें व ६ वे मे तो आता ही है, यदि और गिरे तो पहिले गुणस्थान तक भी जा सकता है। क्षाधिक सम्यग्दृष्टि उपशातकषाय क्रमश. १०वे, वे, वें, ७, ६वें मे तो आता ही है, यदि