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गाथा १३
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उत्तर ---- जिस श्रप्रमत्तविरत परिणामके बाद ऊँचे स्थानका परिणाम नही होता, किन्तु छठे गुरणस्थानका भाव होता है उसे स्वस्थान श्रप्रमत्तविरत कहते है | इसका नाम स्वस्थान इसलिये है कि अपने स्थान तक रहता है, आगे नही बढ़ता । छठे व सातवें गुणस्थानका काल छोटा अन्तर्मुहूर्तमात्र है । मुनियोके परिणाम जब तक श्रेणी नही चढ़ते याने आगे नही बढते छठेसे सातवेमे सातवेंसे छठेमे, इस प्रकार असख्यात बार आते-जाते रहते है । प्रश्न १३ - सातिशय श्रप्रमत्तविरत किसे कहते है ?
उत्तर- जिस श्रप्रमत्तविरत परिणामके बाद आठवें गुणस्थानमे पहुचते है उस अप्रमत्तविरतको सातिशय श्रप्रमत्तविरत कहते है ।
प्रश्न १४-- सातिशय अप्रमत्तविरत ऊपरके गुणस्थानमें क्यो पहुच जाता है ? उत्तर - सातिशय प्रप्रमत्तविरतमे इस जातिका अधःकरण परिणाम होता है, जिस निर्मल परिणामके कारण वह ऊपरके परिणाममे पहुचा देता है ।
प्रश्न १५ -- प्रधःकरण परिणाम किसे कहते हैं ?
उत्तर - जहाँ ऐसा परिणाम हो कि अध:करणके कालमे विवक्षित कालवर्ती मुनियों के परिणामके सदृश अधस्तन कालवर्ती मुनियो के परिणाम भी मिल जायें उसे अधःकरण परिनाम कहते है ।
श्रानन्तानुबधीका विसयोजन, दर्शन मोहनीयका उपशम, दर्शन मोहनीयका क्षय, चारित्रमोहनीयका उपशम, चारित्र मोहनीयका क्षय आदि उच्च स्थानोकी प्राप्तिके लिये एक प्रकारके निर्मल परिणाम ३ तरहके पाये जाते है - (१) अध:करण, (२) अपूर्वकरण र (३) अनिवृत्तिकरण |
यहा चारित्रमोहनीयको उपशम या क्षयके लिये उद्यम प्रारम्भ होता है, उसके लिये होने वाले निर्मल परिणामोमे से यह पहला भाग है ।
प्रश्न १६ - सातिशय अप्रमत्तविरतके अनन्तर किस गुणस्थानमे पहुचना होता है ? उत्तर - यदि चारित्रमोहनीयके उपशमके लिये अधःकरण परिणाम हुआ है तो उपशमक अपूर्वकरणमे पहुंचता है और यदि चारित्रमोहनीयके क्षयके लिये अधःकरण परिणाम हुआ है तो क्षपक प्रपूर्वकरणमे पहुंचता है ।
प्रश्न १७ - पूर्वकरण गुणस्थान किसे कहते है ?
उत्तर - जहां चारित्रमोहनीयके उपशम या क्षयके लिये उत्तरोत्तर पूर्वं परिणाम हो उसे पूर्वकरण गुणस्थान कहते है । इसका अपूर्वकरण इसलिये नाम है कि इसके कालमे समानसमयवर्ती मुनियोंके परिणाम सदृश भी हो जायें, किन्तु उस विवक्षित समय से भिन्न ( पूर्व या उत्तर ) समयवर्ती मुनियोके परिणाम विसदृश ही होगे ।