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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका जाता है ?
उत्तर-इस शाश्वत शुद्ध पारिणामिक भावका ध्यान करना कर्तव्य हो जाता है। यह शुद्ध स्वभाव तो शाश्वत है, ध्येयरूप है।
इस प्रकार ससारस्थ अधिकारका विवरण करके सिद्ध और विस्रसोर्ध्वगति- इन दो अधिकारोका एक गाथामे विवरण करते है
णिकम्मा अट्ठगुणा किंचूणा चरमदेह दोसिद्धा ।
लोयगठिदा णिच्चा उप्पादवयेहिं संजुत्ता ॥१४॥ अन्वय-सिद्धा णिक्कम्मा, अढगुणा चरमदेहो किचूणा, लोयगठिदा, णिच्चा, उप्पादवयेहि सजुत्ता।
अर्थ-सिद्धभगवान अष्टकर्मोंसे रहित है, अष्टगुणोसे सहित है, अन्तिम शरीरसे कुछ कम है तथा ऊर्ध्वगमन स्वभावसे लोकके अग्रभागमे स्थित हैं, नित्य है और उत्पादव्ययकरि सयुक्त हैं।
प्रश्न १-सिद्ध शब्दका क्या अर्थ है ? उत्तर- सिध्ययति इति सिद्ध । जो पूर्णविकासको प्राप्त हो गया उसे सिद्ध कहते है। प्रश्न २-जीवका विकास क्यो रुका हुआ है ? उत्तर--अपने विभाव परिणामोके कारण जीवका विकास रुका हुआ है । प्रश्न ३-जीवके विभावपरिणाम क्यो हो जाते है ?
उत्तर- कर्मोंके उदयका निमित्त पाकर जीवके मलिन सस्कारके कारण जीवके विभावपरिणाम हो जाने है । ये विभावपरिणाम, दुःखरूप है।
प्रश्न ४-कर्म कितने प्रकारके होते हैं ?
उत्तर- कर्म तो असख्यातों प्रकारके है, किन्तु उनके फल देनेकी प्रकृतिकी जाति बना कर भेद करनेसे कर्म ८ प्रकारके है- (१) ज्ञानावरण, (२) दर्शनावरण, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयु, (६) नाम, (७) गोत्र और (८) अन्तराय ।
प्रश्न ५-ज्ञानावरणकर्म किसे कहते है ?. ..
उत्तर- जिनमे ज्ञानको प्रकट न होने देनेके निमित्त होनेकी प्रकृति हो उन कर्मवर्गरणामोको ज्ञानावरणकर्म कहते हैं।
प्रश्न ६-- दर्शनावरण कर्म किसे कहते है ?
उत्तर-- जिन कार्माणवर्गणावोमे अन्तर्मुखे चैतन्य प्रकाशको प्रकट न होने देनेके निमित्त होनेकी प्रकृति हो उन्हे दर्शनावरणकर्म कहते है । ' .
प्रश्न ७-वेदनीयकर्म किसे कहते है ?