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गाथा ११ - (२) अप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति ।
प्रश्न १८-सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति किन्हे कहते है ?
उत्तर-- जो प्रत्येकवनस्पति साधारणवनस्पतिकाय जीवोकरि प्रतिष्ठित हो याने सहित हो उन्हे सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति कहते है।
प्रश्न १९--सप्रतिष्ठित पत्येकवनस्पतिकायोकी पहिचान क्या है ?
उत्तर-- जिनकी शिरा, सधि, पर्व अप्रकट हो, जैसे-जरुवाककडी, जरुवातुरई, थोडे दिनका गन्ना आदि।
जिनका भङ्ग करने पर समान भङ्ग हो, जैसे-धनन्तरके पत्ते, पालकके पत्ते प्रादि । छेदन करने पर भी जो उग पार्वे, जैसे आलू आदि ।
जिस वनस्पतिका कन्द, मूल क्षुद्र शाखा या स्कन्धकी छाल मोटी हो, जैसे-वारपाठा, मूली, गाजर आदि।
प्रश्न २०- सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति भक्ष्य है अथवा अभक्ष्य ?
उत्तर- सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिमे अनन्त साधारणवनस्पति जीव रहते है, अत: सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिमें अभक्ष्य है।
प्रश्न २१- साधारणवनस्पतिके कितने भेद है ?
उत्तर-- साधारण वनस्पतिके २ भेद है- (१) वादर सोधारणवनस्पतिकाय (वादर निगोद), (२) सूक्ष्म साधारणवनस्पतिकाय (सूक्ष्म निगोद)। इन दोनोके भी २-२ भेद है । (१) नित्यनिगोद. (२) इतरनिगोद ।
प्रश्न २२-- नित्यनिगोद किन्हे कहते है ?
उत्तर-जिन जीवोने निगोदके अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय आज तक नही पाई उन्हे नित्यनिगोद कहते है । ये जीव २ तरहके है-- (१) अनादि अनन्त नित्यनिगोद, (२) मनादि सान्त नित्यनिगोद।
प्रश्न २३- अनादि अनन्त नित्यनिगोद किन्हे कहते है ?
उत्तर-- जिन्होने निगोदके अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय न आज तक पाई और न कभी पावेगे उन्हें अनादि अनन्त नित्यनिगोद कहते है ?
प्रश्न-२४ अनादिसान्त नित्यनिगोद किन्हे कहते है ?
उत्तर-- अनादिसान्त नित्यनिगोद उन्हे कहते है, जिन्होने निगोदके अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय आज तक नहीं पाई, किन्तु आगे अन्य पर्याय पा लेंगे याने निगोदसे निकल जावेगे उन्हे अनादि सान्त नित्यनिगोद कहते हैं।
प्रश्न २५- इतरनिगोद किन्हे कहते है ?