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गाया १२
पूर्ण करे उसे पर्याप्तिनामकर्म कहते है ।
प्रश्न ३-- अपर्याप्त किसे कहते है ?
उत्तर-- जिनके अपर्याप्तिनामकर्मका उदय है उन्हें अपर्याप्त कहते है ।
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प्रश्न ४- पर्याप्तिनामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-- जिस नामकर्मके उदयसे जीव अपने-अपने योग्य पर्याप्तियोको पूर्ण न कर सके और मरण हो जाय उसे अपर्याप्तिनमिकर्म कहते है ।
प्रश्न ५ -- पर्याप्त, श्रपयप्तिकी इस व्याख्यासे तो जिनके पर्याप्तिनामकर्मका उदय है वे पूर्वभवके मरणके बाद विग्रहगतिमें और जन्मके पहिले अन्तर्मुहूर्तमे भी अपर्याप्त न न कहलावेगे ?
उत्तर- जिनके पर्याप्तिनामकर्मका उदय है वे जीव विग्रहगतिमें व जन्मके पहिले प्रन्तर्मुहूर्त निर्वृत्यपर्याप्त कहलाते है ।
प्रश्न ६-- निर्वृत्यपर्याप्ति किन्हे कहते है ?
उत्तर- जिन जोवोके अपने-अपने योग्य पर्याप्तियां पूर्ण तो अवश्य होनी है और पूर्ण होनेसे पहिले उनका मरण भी नही होना, किन्तु जब तक उनकी शरीरपर्याप्ति पूर्ण नही होती तब तक वे निर्वृत्यपर्याप्त कहलाते है |
प्रश्न ७- प्रपर्याप्त शब्दसे यहा किन अपर्याप्तोका ग्रहण करना चाहिये ?
उत्तर - यहाँ जिनके अपर्याप्तिनामकर्मका उदय है अपर्याप्त जिनका दूसरा नाम लब्धपर्याप्त है और निर्वृत्थपर्याप्त दोनो अपर्याप्तोका ग्रहण करना चाहिये ।
प्रश्न ८- पर्याप्ति कितनी होती है ?
उत्तर -- पर्याप्ति ६ होती है- (१) श्राहारपर्याप्ति, (२) शरीरपर्याप्ति, (३) इन्द्रिय पर्याप्ति, (४) श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति, (५) भाषापर्याप्ति, (६) मनःपर्याप्ति |
प्रश्न -- आहारपर्याप्ति किसे कहते है ?
उत्तर- एक शरोरको छोडकर नवीन शरीरके साधनभूत जिन नोकर्मवगंणावोको जीव ग्रहण करता है उनको खल व रस भागरूप परिणामावनेको शक्तिके पूर्ण हो जानेको श्राहारपर्याप्ति कहते है ।
प्रश्न १०-- शरीरपर्याप्ति किसे कहते है ?
उत्तर- गृहीत नोकर्म वर्गणावोके स्कन्धमे से खल भागको हड्डी आदि कठोर अवयव रूप तथा रसभागको खून आदि द्रव अवयवरूप परिणमा वनेको शक्तिकी पूर्णताको शरीरपर्याप्त कहते है ।
प्रश्न ११ - इन्द्रियपर्याप्ति किसे कहते है ?