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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका मानन्दरूप निर्मल पर्यायकी उत्पत्ति होती है ।
प्रश्न १३--यह आनन्द प्रात्माके किस गुणकी पर्याय है ? उत्तर-आनन्द आत्माके आनन्द गुणकी पर्याय है। प्रश्न १४-सुख, दुख किस गुणकी पर्यायें है ?
उत्तर- सुख, दुःख भी आनन्द गुणकी पर्यायें है । आनन्द गुणकी तीन पर्यायें है(१) आनन्द, (२) सुख और (३) दुख । आनन्द तो स्वाभाविक परिणमन है और सुख एव दुःख विकृत परिणमन है।
प्रश्न १५- अनन्त सुख तो स्वाभाविक परिणमन माना गया है, फिर सुखको विकृत परिणमन कैसे कहा ?
उत्तर-सुखका अर्थ है-ख-इन्द्रियोको, सु-मुहावना लगना । सो यह अशुद्ध परिणमन ही है, क्योकि आत्मा तो इन्द्रियोसे रहित है। दुःखका भी अर्थ है, ख--इन्द्रियोको, दुः-- बुरा लगना । जैसे दु.ख विकृत परिणमन है वैसे मुख भी विकृत परिणमन है। परन्तु मुखसे परिचित प्राणियोपर दया करके आनन्दके स्थानमे सुख शब्द रखकर अनन्त सुख शब्दसे प्राचार्योने प्रतिपादन किया है । जिससे ये प्राग्गो "अनन्त समृद्धि मुक्तावस्थामे है" यह समझ जावे।
प्रश्न १६-पानन्द शब्दका क्या अर्थ है ?
उत्तर-"पा समन्तात् नन्दन आनन्दः ।" सर्व प्रकार सर्वप्रदेशोमे सत्य समृद्धि होना आनन्द है । आत्माकी सत्य समृद्धि सुख दुःखसे रहित परमनिराकुलताके अनुभवमे है। एतदर्थ आनन्दके स्रोतरूप चैतन्यस्वभावकी निरन्तर भावना करना चाहिये।
इम प्रकार "जीव भोक्ता है" इस अर्थके व्याख्यानका अधिकार समाप्त करके "जीव स्वदेहपरिमाण है" इसका वर्णन करते है--
अणुगुरुदेहपमाणो उवसहारप्पसप्पदो चेदा ।
असमुहदो ववहारा णिच्चयणयदो असखदेसो वा ॥१०॥ अन्वय- चेदा ववहारा असमुहदो उवसहारप्पसप्पदो अणुगुरुदेहपमाणो, वा णिच्चयणयदो असखदेसो।
अर्थ- आत्मा व्यवहारनयसे समुद्घातके मिवाय अन्य सब समय सकोच और विस्तार के कारण अपने छोटे-बडे शरीरके प्रमाण है और निश्चयनयमे असख्यात प्रदेशोका धारक है।
प्रश्न १-- समुद्घातमे यह जीव शरीरके प्रमाण क्यो नही रहता ?
उत्तर- जिन कारणोंसे अथवा जिन प्रयोजनोके लिये समुद्घात होता है उनकी मिद्धि शरीरसे भी बाहर आत्मप्रदेशोके रहनेमे है।