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गाथा १० तैजससमुद्घात।
प्रश्न २०- शुभ तैजससमुद्घात कब और किसलिये निकलता है ?
उत्तर-- जब लोकको व्याधि, दुर्भिक्ष आदिसे पीडित देखकर तैजस ऋद्धिधारी सयमी महामुनिके कृपा उत्पन्न होती है तब मुनिके दाहिने कन्धेसे पुरुषाकार तेजस्वरुप एक पुतला निकलता है । वह व्याधि और दुभिक्ष आदि उपद्रवको नष्ट करके फिर मूलशरीरमे प्रवेश कर जाता है । इसे शुभ तेजसशरीर कहते है ।
प्रश्न २१-- शुभ तैजसशरीरका म्वरूप कैसा है ?
उत्तर-- शुभ तैजसशरीर श्वेतरूपका सौम्य आकार वाला पुरुषाकार १२ योजन तक का विस्तार वाला तेजोमय होता है।
प्रश्न २२-अशुभ तेजससमुद्घात कब और किसलिये निकलता है ?
उत्तर-जब मनको अनिष्टकारी किसी कारण व उपद्रवको देखकर तैजस ऋद्धिधारी महामुनिके क्रोध उत्पन्न होता है , तब सोची हुई विरुद्ध वस्तुको भस्म करनेके लिये मुनिके बायें कधेसे तैजसशरीरमय पुतला निकलता है । वह विरुद्ध वस्तुको भस्म करके और फिर उस ही संयमी मुनिको भस्म करके नष्ट हो जाता है । इसे अशुभतैजसशरीर कहते है।
प्रश्न २३-अशुभतैजसशरीरका स्वरूप कैसा है ?
उत्तर- अशुभतेजसशरीर सिन्दूरकी तरह लाल रगका, बिलावके आकार वाला, १२ योजन लम्बा, मूलमे सूच्यगु नके सख्यातभागप्रमाण चौडा और अन्तमे ६ योजन चौडा तेजोमय होता है।
प्रश्न २४-- आहारकसमुद्घात किसे कहते है ?
उत्तर- किसी तत्त्वमे सदेह होनेपर सदेहकी निवृत्तिके अर्थ आहारकऋद्धिधारी महामुनिके मस्तकसे एक हाथका पुरुषाकार श्वेत रंगका केवलज्ञानी प्रभुके दर्शनके लिये आहारक शरीर निकलता है, उसके साथ प्रात्मप्रदेशोका बाहर निकलना आहारकसमुद्घात है । यह आहारकशरीर सर्वज्ञदेवके दर्शन कर मूलशरीरमें प्रविष्ट हो जाता है । सर्वज्ञ प्रभुके दर्शनसे तत्त्वसन्देह दूर हो जाता है । यह समुद्घात एक ही दिशाको प्राप्त होता है ।
प्रश्न २५- केवलिसमुद्घात किसे कहते है ?
उत्तर-आयुकर्मकी स्थिति अत्यल्प रहनेपर और शेष ३ अघातिया,कर्मोकी स्थिति अधिक होनेपर सयोगकेवली भगवानके प्रात्मप्रदेशोका दण्ड, कपाट, प्रतर, लोकपूरणके प्रकार से बाहर निकलना होता है वह केवलिसमुद्घात है। ..
प्रश्न २६- केवलिसमुद्घात क्या सभी सयोगकेवली भगवानके होता है या किसी -किसीके ?