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गाथा ७
उत्तर-गन्ध गुणके परिणमन दो प्रकारके है-(१) सुगन्ध, (२) दुर्गन्ध । प्रश्न - स्पर्श किसे कहते है ?
उत्तर- 'स्पृश्यते इति स्पर्श:' इन्द्रियके द्वारा छुवा जाय उसे स्पर्श कहते है। स्पर्श सामान्य तो गुण है और स्पर्श गुणके परिणमन पर्यायें है ।
प्रश्न १०-- स्पर्शगुणकी कितनी पर्याये है ?
उत्तर-स्पर्श गुणकी ८ पर्याये है-(१) स्निग्ध, (२) रूक्ष, (३) शीत, (४) उष्ण, (५) गुरु, (६) लघु, (७) मदु और (८) कठोर ।
प्रश्न ११- स्पर्श गुणकी पर्याय एक समयमे एक द्रव्यमे एक ही रहती है या अनेक ?
उत्तर--उक्त ८ पर्यायोमे से ४ पर्यायें तो आपेक्षिक है-(१) गुरु, (२) लघु, (३) मृदु और (४) कठोर । ये स्कध पर्यायोमे ही पाये जाते है इनका आधारभूत द्रव्यमे कोई मुरण नही है, केवल स्पर्शनेन्द्रियके द्वारा ये समझमे आते है सो ये स्पर्शगुणको पर्याय उपचारसे कही जाती हैं । आदिकी चार पर्यायोमे गुण पर्यायपना है।
प्रश्न १२.- स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण क्या ये चारो पर्यायें एक द्रव्यमे एक साथ रहती है या क्रमसे ?
उत्तर-एक द्रव्यमे (१ परमागुमे) इन चारमे से दो रहती है स्निग्य रूक्षमे से एक व शीत उष्णमेसे एक ।
प्रश्न १३-- एक स्पर्शगुणकी २ पर्याये एक साथ कैसे रह सकती है ?
उत्तर-भेदविवक्षासे वास्तवमे एक परमाणु द्रव्यमे एतद्विषयक दो गुण है-एक गुणके परिणमन तो स्निग्ध, रूक्ष है और दूसरे गुणके परिणमन शीत, उष्ण है । परन्तु ये पर्याय एक स्पर्शनइन्द्रियके द्वारा जानी जाती है । अत इन सबको एक स्पर्श गुणके परिणमन कहा जाता है।
प्रश्न १४-उन दोनो स्पर्श गुणोके नाम क्या है ? ___ उत्तर- इन दोनो स्पर्श गुणोके नाम उपलब्ध नही है. फिर भी एक गुणकी एक ही पर्याय होती है । इस अकाट्य नियमके कारण दो गुण सिद्ध ही है । जैसे एक चैतन्य गुणके दो परिणमन है-(१) ज्ञानोपयोग, (२) दर्शनोपयोग । ये दोनो उपयोग एक साथ होते है, अत. दो गुण सिद्ध होते है । एक गुणका नाम है ज्ञान और दुसरे गुणका नाम है दर्शन । चेतनकार्य दोनोका होनेसे इन दोनो गुणोका एक अभेद नाम चैतन्य है । इसी प्रकार स्पर्श गुण का भी दो प्रकार परिणमन जानना ।
प्रश्न १५-ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग छद्मस्थोमे तो क्रमसे होता है, फिर ये दो गुणोके परिणमन कैसे हुए ?
- उत्तर-उनस्थोमे यद्यपि इनका उपयोग एक साथ नही है तो भी ज्ञानगुण और