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द्रव्यसंग्रह - प्रश्नोत्तरी टीका
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दर्शन गुण दोनो का परिणमन सदैव होता रहता है। हाँ छद्मस्थ उपयोग क्रमसे लगा पाता है । प्रश्न १६ - उक्त बीसो पर्यायें निश्चयसे श्रात्मामे क्यो नही है ?
रम,
गध,
उत्तर- इन बीसो पर्यायोका और उनके श्राधारभूत चारो गुणोका व्याप्यव्यापक भाव पुद्गल द्रव्यके साथ है, आत्माके साथ नही । इस कारण श्रात्मामे निश्चयसे ये वर्ण, स्पर्श नही है ।
प्रश्न १७ –– वर्णं, गन्ध, रस, स्पर्श न होनेसे आत्मा अमूर्त क्यो है ? उत्तर- वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्शका नाम मूर्त है । यह मूर्त जहाँ नहीं, वह अमूर्त है । प्रश्न १६ - यदि श्रात्मा अमूर्त है तो उसके कर्मबन्ध कैसे होता है ? उत्तर - समारी आत्मा व्यवहारनयसे मूर्त है, अत जाता है ।
इस मूर्त प्रात्माके कर्मबन्ध हो
प्रश्न १९ – ससारी आत्मा किस कारगासे मूर्त है ?
उत्तर - अनादि परम्परासे चले ग्राये कर्मोके बन्धनके कारण श्रात्मा मूर्त है । प्रश्न २० - यदि श्रात्मा व्यवहारनयसे मूर्त है तो कर्मबन्ध भी व्यवहारसे ही होगा, निश्चयसे नही होगा ?
उत्तर- ठीक है । कर्मबन्ध भी व्यवहारसे है, निश्चयसे नही है । निश्चयनय तो केवल एक द्रव्यको या एक शुद्ध स्वभावको देखना है ।
प्रश्न २१ - यदि कर्मबन्ध व्यवहारसे है तो उसका फल दुःख भी व्यवहारमे होता
होगा ?
उत्तर - यह भी ठीक है । प्रात्माके दुख भी व्यवहारसे है । निश्चयनयसे तो आत्मा सुख दुःख के विकल्पसे रहित शुद्ध ज्ञायकभावरूप जाना जाता है ।
प्रश्न २२ -- यदि दुख भी व्यवहारसे है तो कर्मबन्धके दूर करनेका उद्यम क्यो करना चाहिये ?
उत्तर -- जिसे व्यवहारका दुख नही चाहिये उसे व्यवहारका कर्मबन्धन हटानेका उद्यम करना ही चाहिये । हाँ, जिसे व्यवहारका दुख इष्ट हो वह व्यवहारका कर्मबन्ध न हटावे | ऐसे जीव तो ससारमे अब भी ग्रनन्तानन्त है ।
प्रश्न २३ – किस व्यवहारनयसे आत्मा मूर्तिक है ?
उत्तर- अनुपचरित प्रसद्भूत व्यवहारनयसे श्रात्मा मूर्तिक है । ऐसी मूर्तिकता अनादि परम्परासे है अतः अनुपचरित है, मूर्तिकता स्वरूपमे नही है इसलिये श्रसभूत है श्रीर इसमे कर्मयोगकी अपेक्षा है इसलिये व्यवहार है । प्रश्न २४ – तब ससार अवस्थामे
जीवको मूर्त ही माना जावे, अमूर्त नही मानना