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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न १६०-~-अवधिज्ञानका दूसरा अर्थ भी कोई है ?
उत्तर- है । अबाग्धानादवधिः इस व्युत्पत्तिके अनुसार अवधिज्ञानका यह अर्थ है जो नीचे विशेष क्षेत्र लेकर जावे सो अवधिज्ञान है । अवधिज्ञानका क्षेत्र नीचे विशेष होता है, ऊपर कम होता है । पूर्ण अवधिज्ञानकी बात विशेष है।
(प्रश्न १६१- अवधिज्ञानके कितने भेद है ?
उत्तर- अवधिज्ञानके २ भेद है-(१) गुणप्रत्यय अवधिज्ञान, (२) भवप्रत्यय अवधिज्ञान । गुणप्रत्यय अवधिज्ञान मनुष्य, तिर्यञ्चोका कहलाता है । भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव नारकियोंके होता है।
प्रश्न १६२-- क्या अवधिज्ञानके अन्य प्रकारसे भी भेद है ?
उत्तर- अवधिज्ञानके ३ भेद है- (१) देशावधि, (२) परमावधि और (३) सर्वावधि । देशावधि चारो गतियोमे हो सकता है । पावधि और सर्वावधि मनुष्यके ही और तद्भव मोक्षगामीके ही होते है।
प्रश्न १६३-अवधिज्ञानके और भी अन्य प्रकारसे भेद है क्या ?
उत्तर-अवधिज्ञानके ६ भेद है-(१) अनुगामी, (२) अननुगामी, (३) वर्द्धमान, (४) हीयमान, (५) अवस्थित, (६) अनवस्थित ।
प्रश्न १६४- इन सब भेदोके स्वरूप क्या है ?
उत्तर-इन सव भेदोके स्वरूप आदि जाननेके लिये गोम्मठसार जीवकाण्ड आदि सिद्धान्त ग्रन्थ देखें। इस टीकामे विस्तारभयसे नहीं लिखा जा रहा है।
प्रश्न १६५- मन पर्ययज्ञान किसे कहते है ?
उत्तर-जो ज्ञान इन्द्रिय व मनको सहायता बिना आत्मीय शक्तिसे दूसरोके मनमे तिष्ठते हुये विकल्पको व विकल्लागत रूपी पदार्थको एकदेश स्पष्ट जा: उसे मन-पर्ययज्ञान कहते
प्रश्न १६६- क्या मन पर्ययज्ञान मनके अवलम्बनसे प्रकट नही होता?
उत्तर- मन.पर्ययज्ञानोपयोग होनेसे पहिले ईहामतिज्ञान होता है और ईहामतिज्ञान मनके अवलम्बनसे प्रकट होता है । इस तरह मन.पर्ययज्ञानसे पहिले तो मनका अवलम्बन है, किन्तु मनःपर्यंयज्ञानोपयोगके समय मनका अवलम्बन नही है ।
प्रश्न १६७--मन पर्ययज्ञानके कितने भेद है ?
उत्तर- मनःपर्ययज्ञानके २ भेद है- (१) ऋजुमतिमन पर्यवज्ञान, (२) विपुलमतिमनःपर्ययज्ञान ।
प्रश्न १६८- ऋजुमतिमन पर्ययज्ञान किसे कहते है ?