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गाथा ५
उत्तर- कैसे उपसर्ग सहना चाहिये, कैसे परीषह सहना चाहिये इत्यादि अनेक प्रश्नो के इसमे उत्तर दिये गये है।
प्रश्न १०१- कल्पव्यवहारनाम श्र तागमे किसका वर्णन है ?
उत्तर-साधुओके कल्प्य याने योग्य आचरणोके व्यवहार याने आचरणका कल्प्यव्यवहारमे वर्णन है।
प्रश्न १०२-कल्प्याकल्प्य श्रु ताङ्गमे किस विषयका वर्णन है ?
उत्तर- द्रव्य, क्षेत्र, काल' व भावके अनुसार मुनियोके लिये यह योग्य है व यह अयोग्य है-इस प्रकार सब कल्प्य और अकल्प्योका इस श्रु ताङ्गमे वर्णन है ।
प्रश्न १०३- महाकल्प्य नामक अङ्गबाह्य श्रुतमे किसका वर्णन है ? * उत्तर-काल व सहननकी अनुकूलताको प्रधानतासे साधुनोके योग्य द्रव्य, क्षेत्र आदि का वर्णन इस श्रुताङ्गमे है।
प्रश्न १०४-पुण्डरीक नामक बाह्य श्रु तमे किसका वर्णन है ? '
उत्तर- इस श्रुताङ्गमे चार प्रकारके देवोमे उत्पत्तिके कारणभूत पूजा, दान, तप, व्रत आदिके अनुष्ठानोका वर्णन है।
प्रश्न १०५- महापुण्डरीक श्रुतागमे किस विषयका वर्णन है ?
उत्तर- इस श्रुताङ्गमे इन्द्र व प्रतीन्द्रोमे उत्पत्तिके कारणभूत विशिष्ट तपोके अनुष्ठान का वर्णन है।
प्रश्न १०६- निपिद्धिका नामक श्रु ताङ्गमे किस विपयका वर्णन है ? ___उत्तर-दोषोके निराकरणमे समर्थ अनेक प्रकारके प्रायश्चितोका वर्णन निपिद्धिका नामक बाह्यश्रु तमे है।
प्रश्न १०७-अगप्रविष्टके कितने भेद है ? ___ उत्तर-गप्रविष्टके बारह भेद है—(१) प्राचाराग, (२) सूत्रकृताङ्ग, (३) स्थानाग, (४) समवायाङ्ग, (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति, (६) ज्ञातृकथाङ्ग, (७) उपासकाध्ययनाग, (८) अन्त:कृशाङ्ग, (६) अनुत्तरोपपादिकदशाङ्ग, (१०) विपाकसूत्राङ्ग, (११) प्रश्नव्याकरणाग और (१२) दृष्टिवादाङ्ग । इन बारह अगोमे से सबसे अधिक विस्तृत दृष्टिवाद अंग है, इसके भी भेद प्रभेद अनेक है।
प्रश्न १०८-दृष्टिवाद अगके कितने भेद है ?
उत्तर-दृष्टिवाद अंगके ५ भेद है-११) प्रथमानुयोग, (२) परिकर्म, (३) सूत्र, (४) चूलिका और (५) पूर्व । इनमे से परिकर्म, चूलिका और पूर्वके भी अनेक भेद है ।
प्रश्न १०६-परिकर्मके कितने भेद है ?