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चतुर्थ अध्ययन]
[33 ऐसा कोई जीव नहीं जो इन विभागों में न आता हो । इन 6 प्रकार के जीवों को संक्षेप में इस प्रकार समझना चाहिए।
___ 1. पृथ्वीकाय-पृथ्वी कठिन लक्षण वाली है, पृथ्वी ही जिनका शरीर है, ऐसे जीवों को पृथ्वीकायिक कहते हैं। जैसे-मिट्टी, लवण, खड़िया, अभ्रक धातु आदि ।
2. अप्काय-शीतलता गुणवाले, जल ही जिनका शरीर है, वे अप्कायिक कहलाते हैं। जैसे वर्षा का पानी, ओस, हिम आदि।
3. तेजस्काय-दाहकता गुण वाली अग्नि ही जिनका शरीर है, उनको तेजस्कायिक कहते हैं। जैसे-अंगार, ज्वाला, अर्चि, विद्युत् आदि।
4. वायुकाय-गतिशील वायु ही जिनका शरीर है, वे जीव वायुकायिक कहलाते हैं। जैसे उत्कलित वायु, संवर्तक वायु, घनवात, तनुवात आदि।
5. वनस्पतिकाय-हरित वनस्पति ही जिनका शरीर है, उनको वनस्पतिकायिक जीव कहते हैं। जैसे-तृण, वृक्ष, लता आदि । इनके 10 अंग होते हैं, 1. मूल, 2. कंद, 3. स्कन्ध, 4. त्वचा, 5. शाखा, 6. प्रवाल, 7. पत्र, 8. पुष्प, 9. फल और 10. बीज
6. त्रसकाय-त्रसनशील शरीर वाले जीवों को त्रसकायिक कहते हैं। ये सर्दी गर्मी से बचाव करने के लिए स्थानान्तरण करते हैं, जैसे-कीड़ी, मक्खी, मच्छर, पशु, पक्षी, मनुष्यादि ।
पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।।4।। हिन्दी पद्यानुवाद
पृथ्वी सचित्त है बतलाया, और जीव पृथक् सत्ता वाले।
जीव अनेक शस्त्रपरिणत, तब सब के सब जीवन वाले।। अन्वयार्थ-पुढवी = पृथ्वी। चित्तमंतमक्खाया = चित्तवती कही गई है उसमें । पुढोसत्ता = पृथक् सत्ता वाले। अणेगजीवा = अनेक जीव हैं। सत्थपरिणएणं = अग्नि आदि शस्त्र से परिणत के। अन्नत्थ = अतिरिक्त पृथ्वी सजीव होती है।
भावार्थ-नैयायिक आदि दर्शनों ने पृथ्वी, अप्, तैजस्, वायु और आकाश को तत्त्व माना है, किन्तु उन दार्शनिकों ने पृथ्वी आदि को सचेतन नहीं माना । प्रभु महावीर पृथ्वी आदि को सचेतन बतलाते हुए कहते हैं कि-पृथ्वी चेतना वाली अर्थात् सचेतन है। कंकर, पत्थर, शिला, लवण, खड़ी आदि में सूक्ष्म शरीर वाले अनेक जीव हैं। जैन-शास्त्र के अनुसार छोटी सी नमक की कंकरी में असंख्य जीव हैं।