________________
[185
सातवाँ अध्ययन हिन्दी पद्यानुवाद
हे सखि ! अन्ने ! भट्टे ! स्वामिनि !, हे गोमिनि ! से प्रिय आमन्त्रण।
हे होले ! हे गोले ! वसुलि ! यों न नारी को कहे श्रमण ।। अन्वयार्थ-हले = हे हले। हल्लित्ति (हलित्ति हलेत्ति) = हे सखि । अण्णित्ति (अन्नेत्ति) = हे अण्णे । भट्टे = हे भट्टे । सामिणि = हे स्वामिनी । गोमिणि = हे गोमिनी । होले = हे मूर्ख । गोले = हे गोली । वसुलित्ति (वसुलेत्ति) = हे दुश्शीले । एवं = ऐसे शब्दों से । इत्थियं = स्त्री को । ण आलवे = नहीं पुकारे।
भावार्थ-ऐसे ही हल्के शब्दों से बोलना भी उचित नहीं कहा जाता है। जैसे-हे हले, हे अन्ने, हे भट्टे, हे स्वामिनी, हे गोमिनी, हे गोले, हे वसुलि आदि । साधु ऐसे शब्दों से स्त्री को सम्बोधित नहीं करे।
णामधिज्जेण णं बूया, इत्थीगुत्तेण वा पुणो।
जहारिहमभिगिज्झ, आलविज्ज लविज्ज वा।।17।। हिन्दी पद्यानुवाद
ले नारी का नाम गोत्र से, उच्चारण करके बोले ।
यथायोग्य गुणपूर्वक चाहे, एक अनेक बार बोले ।। अन्वयार्थ-णं = उस स्त्री को । णामधिज्जेण = नाम से । बूया = बोले । वा = अथवा । पुणो = फिर । इत्थीगुत्तेण (इत्थीगोत्तेण) = स्त्री के गोत्र से । जहारिहमभिगिज्झ = यथायोग्य गुणों को ग्रहण करके । आलविज्ज (आलवेज्ज) = एक बार बोले । वा = या। लविज्ज (लवेज्ज) = अनेक बार बोले।
भावार्थ-साधु को स्त्री से कभी बोलना हो, तो नाम से अथवा स्त्री के गोत्र से उसे सम्बोधित करे। यथायोग्य वृद्ध हो तो-माँजी, श्राविका, सम्पन्न घर की हो तो सेठानी, मास्टरनीजी, तपसणजी आदि गुणों के अनुसार सम्बोधित करे।
अजए पजए वा वि, वप्पो चुल्लपिउ त्ति य।
माउलो भाइणिज त्ति, पुत्ते णत्तुणिय त्ति य ।।18।। हिन्दी पद्यानुवाद
हे दादा ! नाना ! परदादा ! परनाना ! और पिता ! काका ! मामा ! भाणेज ! पुत्र ! पोता ! दौहित्र ! न कहना मुनिजन का ।।