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अतएव सुखार्थी जो जन हैं, वे इस पर नित्य विचार करें। जग जान अनित्य तथा भंगुर, संयम सुख में ही रमण करें ।।
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अन्वयार्थ-परियाइ = संयम पर्याय में । रयाण = रत रहने वाले महापुरुषों के लिये वह संयम । अमरोवमं = देवलोक तुल्य । उत्तमं = उत्तम । सुक्खं I : सुखों के समान आनन्ददायक होता है । जाणिय = ऐसा जानकर । तहा = तथा । अरयाणं = संयम में अरतों को यानी संयम में रुचि नहीं रखने वालों को वही समान । उत्तमं = घोर । दुक्खं = दुःखदायी प्रतीत होता है । तम्हा = ऐसा । : बुद्धिमान् पण्डित साधु को । परियाइ = संयम-मार्ग में ही । रमिज्ज = रमण
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संयम | नरओवमं = नरक के जाणिय = जानकर । पंडिए करना चाहिये ।
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भावार्थ-संयम में रत मुनियों का सुख देवों के समान उत्तम होता है और संयम से अरति रखने वाले मुनियों का दु:ख नरक के समान बड़ा भयंकर होता है । यह जानकर बुद्धिमान् मुनि अरति भाव को हटाकर सदा संयम में रत रहता है।
[दशवैकालिक सूत्र
हिन्दी पद्यानुवाद
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धम्माओ भट्टं सिरिओ ववेयं, जण्णग्गिविज्झायमिवऽप्पतेयं ।
हीलंति णं दुव्विहियं कुसीला, दादुढियं घोरविसं व नागं ।।12।।
विषदन्त विहीन घोर विषधर, को अपमानित सभी करें। पत्थर फेंकें ढ़ेला मारें, मन चाहे जैसा तंग करें । वैसे ही धर्म चारित्र रूप, श्री से जो रहित यहाँ होता । निस्तेज शान्त यज्ञाग्नि तुल्य, निन्दित सबसे निन्दा पाता ।।
अन्वयार्थ-जण्णग्गि = यज्ञ की अग्नि जब तक जलती रहती है तब तक उसे पवित्र समझकर अग्निहोत्री ब्राह्मण उसमें घृतादि डालते हैं और उसे प्रणाम करते हैं किन्तु । विज्झायं (विज्झाअं) = जब वह बुझकर । अप्पतेयं = तेज रहित हो जाती है तब उसकी राख को बाहर फैंक देते हैं, तथा । घोर विसं व = घोर विषमय दाढ़ें जब तक सर्प के मुँह में रहती हैं तब तक सब लोग उस सर्प से डरते हैं, पर । दादुढि (दाढुड्डियं) = जब उसकी वे विषभरी दाढें मदारी अथवा गारुड द्वारा निकाल दी जाती हैं, तब उस सर्प से कोई नहीं डरता । बल्कि छोटे बच्चे तक । नागं = उस नाग को छेड़ते हैं और अनेक प्रकार का कष्ट पहुँचाते हैं । इव = इसी प्रकार जब तक साधु संयम का यथावत् पालन करता हुआ संयम के तेज से तेजोमय रहता है, तब तक सब लोग उसकी विनय-भक्ति एवं वन्दन - नमस्कार, स्वागत-सत्कार आदि करते हैं, किन्तु जब
साधु | धम्माओ (धम्माउ ) = उस संयम धर्म से । भट्टं = भ्रष्ट हो जाता है और । सिरिओ = संयमतप रूपी श्री से, तेज से, लक्ष्मी से या कान्ति से । ववेयं (अवेयं) = रहित होकर । दुव्विहियं = दुराचरणअयोग्य आचरण करने लग जाता है तब । कुसीला = आचार हीन सामान्य जन भी । णं = उसकी । हीलंति हीलना, अवहेलना एवं तिरस्कार करने लग जाते हैं ।