Book Title: Dash Vaikalika Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 312
________________ 300] [दशवैकालिक सूत्र जया य कुकुडुंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मइ। हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ।।7।। हिन्दी पद्यानुवाद मुनिता तजकर जब साधु यहाँ, करता कुटुम्ब जन का चिन्तन। उसकी दुश्चिन्ता से आहत, हो दुःख पाता है वह उस क्षण ।। इससे परिताप उसे होता, वह मन ही मन करता क्रन्दन । जैसे बन्धन में बंधे हुए, गज का भारी पड़ता जीवन ।। अन्वयार्थ-काम-भोगों के झूठे लालच में फँसकर संयम से पतित होने वाले साधु को-जया य = जब । कुकुडुंबस्स = प्रतिकूल स्वभाव वाला कुटुम्ब मिलता है यानी अनुकूल परिवार एवं इष्ट संयोगों की प्राप्ति नहीं होती तब । कुतत्तीहिं = वह आर्त और रौद्रध्यान करता हुआ अनेक प्रकार की चिन्ताओं से। विहम्मइ = चिन्तित रहता है और । बंधणे = बन्धन में । बद्धो = बंधे हुए । हत्थी व = हाथी के समान । स = वह । पच्छा = पीछे बार-बार । परितप्पड़ = परिताप यानी पश्चात्ताप करता है। __भावार्थ-वह उत्प्रव्रजित साधु जब गृहस्थी में कुटुम्ब की दुश्चिन्ताओं से प्रतिहत होता है तब वह वैसे ही परिताप करता है, जैसे जंगल में स्वतन्त्र विचरण करने वाला हाथी पकड़ा जाकर बन्धन में डाल दिये जाने पर परिताप करता है। पुत्तदारपरिकिण्णो, मोह संताणसंतओ। पंको सण्णो जहा नागो, स पच्छा परितप्पइ।।8।। हिन्दी पद्यानुवाद संसार बीच में आकर वह, प्रिय प्रिया पुत्र सबसे घिरकर । फँस जाता है मोह जाल में, ज्यों मक्खी जाले में पड़कर ।। वह करता है परिताप बहुत, पछताता है कर मल मल कर। आकुल व्याकुल हो जाता है, जैसे गज कीचड़ में फँसकर ।। अन्वयार्थ-पुत्तदार परिकिण्णो = पुत्र, स्त्री आदि से घिरा हुआ और । मोहसंताण संतओ = उनके मोहपाश में फँसा हुआ। स = वह संयम भ्रष्ट साधु । पंकोसण्णो = कीचड़ में फंसे हुए । जहानागो = हाथी के समान । पच्छा = पीछे बार-बार । परितप्पइ = पश्चात्ताप करता है। भावार्थ-पुत्र और स्त्री से घिरा हुआ एवं मोह की परम्परा से आबद्ध वह वैसे ही परिताप करता है जैसे पंक में फँसा हुआ हाथी। अज्ज अहं गणी हुँतो, भावियप्पा बहुस्सुओ। जइऽहं रमंतो परियाए, सामण्णे जिणदेसिए ।।७।।

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