Book Title: Dash Vaikalika Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 318
________________ 306] [दशवैकालिक सूत्र भावार्थ-जिसकी आत्मा दृढ़ आत्मबल वाली, दृढ़ निश्चय वाली और दृढ़ संकल्प वाली इस प्रकार होती है कि देह को भले ही त्याग सकता है, पर धर्म-शासन को नहीं छोड़ सकता । उस दृढ़ प्रतिज्ञ साधु को इन्द्रियाँ उसी प्रकार विचलित नहीं कर सकतीं, जिस प्रकार वेगपूर्ण गति से आता हुआ महावायु भी सुदर्शन गिरि को चलायमान नहीं कर सकता। इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो, आयं उवायं विविहं वियाणिया। काएण वाया अदु माणसेणं, तिगुत्तिगुत्तो जिण वयणमहिट्ठिज्जासि ।।18।। त्ति बेमि॥ हिन्दी पद्यानुवाद बुद्धिमान जन इस प्रकार, सम्यक् आलोचन को करके। विविध भाँति के प्राप्त लाभ को, भली भाँति धारण करके। काय वचन एवं मन से, अपने को सदा गुप्त करले। जीवन को ऊँचा करने, जिनवाणी का आश्रय लेले ।। अन्वयार्थ-बुद्धिमं = बुद्धिमान् । नरो = नर । इच्चेव = उपर्युक्त सब बातों, कार्यों पर । संपस्सिय = भली प्रकार से विचार करके, देख करके। विविहं = विविध प्रकार के । आयं = ज्ञानादि लाभ के। उवायं = उपायों को । वियाणिया (विआणिया) = जानकर । माणसेणं = मन । वाया = वचन । अदु = और । काएण = काया रूप । तिगुत्तिगुत्तो = तीन गुप्तियों से गुप्त होकर । जिणवयणं = जिनेश्वर देवों के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा रखते हुए संयम का । अहिट्ठिज्जासि = यथावत् पालन करे। त्ति बेमि = ऐसा मैं कहता हूँ। ___ उपर्युक्त अठारह स्थानों पर सम्यक् प्रकार से विचार करने से संयम से विचलित होता हुआ साधु का मन पुन: संयम में स्थिर हो जाता है। भावार्थ-बुद्धिमान् मनुष्य इस प्रकार सम्यक् रूप से आत्मालोचन कर तथा विविधि प्रकार के लोभ और उनके साधनों को जानकर तीन गुप्तियों काय, वाणी और मन से गुप्त होकर जिनवाणी का आश्रय ले। यही उभयलोक में कल्याण का साधन है। ऐसा मैं कहता हूँ। । प्रथम चूलिका समाप्त ।। 3288888888888A

Loading...

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329