Book Title: Dash Vaikalika Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 277
________________ नौवाँ अध्ययन] [265 T | शूर, तप शूर और धर्म शूर । जो ज्ञान भाव से नाना विध कष्टों को सहन कर लेते हैं उनको धर्म शूर कहते हैं। परमपद मोक्ष की प्राप्ति के लिए सब कुछ सहन कर लेना सरल नहीं है । चूर्णिकार कहते हैं- युद्ध शूर, तप शूर, दान शूर और धर्म शूर में से धर्म शूर, जो धर्म में श्रद्धा से नाना प्रकार के दुःखों, कष्टों एवं दुर्वचनों के प्रहारों क सहन करता है, वह परमाग्र शूर कहलाता है । सब प्रकार के शूरों में वह सर्वोच्च शूर कहा गया है। अवण्णवायं च परम्मुहस्स, पच्चक्खओ पडिणीयं च भासं । ओहारिणीं अप्पियकारिणि च, भासं न भासिज्ज सया स पुज्जो || 9 | हिन्दी पद्यानुवाद = T = अन्वयार्थ-परम्मुहस्स = पीठ पीछे । अवण्णवायं = अवगुणवाद । च = और। पच्चक्खओ सामने । च = और। पडिणीयं (पडिणीअं) विरोधी | भासं = भाषा । ओहारिणिं = निश्चय कारिणी । च = और । अप्पियकारिणि = अप्रीति बढ़ाने वाली । भासं = भाषा । सया = सदा । न भासिज्ज (भासेज्ज) = नहीं बोलता । स = वह । पुज्जो = लोक पूज्य होता है । जो कभी न आगे या पीछे, बोले निन्दा और दुःख वचन । निश्चय एवं अप्रिय भाषा, न कहे सदा वह पूज्य श्रमण ।। भावार्थ-धर्म के लिये जैसे दुर्वचनों को सहन करना आवश्यक है, वैसे ही वाणी का संयम भी आवश्यक है । अत: कहा है कि जो मुनिजन पीठ पीछे किसी का अवर्णवाद नहीं करता और प्रत्यक्ष में विरोधी भाषण नहीं करता, ऐसा करूँगा ही, आदि ऐसी निश्चय कारिणी और अप्रीति वर्द्धक भाषा कभी नहीं बोलता एवं सदा वाणी पर संयम रखता है, वह पूज्य होता है। लोक नीति में भी कहा है कि - परापवाद बोलने में मूक बन जाओ और निन्दा को सुना-अनसुना कर जाओ । अलोलुए अक्कुहए अमाई, अपिसुणे यावि अदीणवित्ती । भाव णोवि भावियप्पा, अकोउहल्ले य सया स पुज्जो ।।10। हिन्दी पद्यानुवाद अकुहक अलोलुप कपट शून्य, पैशुन्य तथा जो दैन्य रहित । करता न कराता निज श्लाघा, कौतुहल वर्जित पूज्य कथित ।। अन्वयार्थ-अलोलुए = जो रस का लोलुपी नहीं होता । अक्कुहए = मान्त्रिक-तान्त्रिक प्रयोग आदि कुतूहल के काम नहीं करता। अमाई = जो निष्कपट है । अपिसुणे = चुगली नहीं करता । या वि = तथा । अदीणवित्ती = लाभालाभ में सम रहता है, दीनता प्रकट नहीं करता । णो भावए = दूसरे से अपनी महिमा नहीं कराता । णो वि य भावियप्पा = और जो स्वयं अपनी प्रशंसा नहीं करता । य = और। सया = सदा । अकोउहल्ले = कुतूहल भाव से रहित होता है । स = वह । पुज्जो = लोक में पूज्य होता है।

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