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[दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद
जन्म मरण से मुक्त और, पर्याय सकल तजकर मुनिजन ।
होता है शाश्वत सिद्ध देव, या अल्परजी वैमानिक बन ।। अन्वयार्थ-इत्थंत्थं (इत्थथं) = यहाँ की नर-नारकादि पर्यायों को । सव्वसो = सर्वथा । चयइ (चएइ) = त्याग करके । च = और । जाइ मरणाओ = जन्म-मरण से। मुच्चड (मच्चई) = मुक्त हो जाता है। वा = अथवा । सासए = शाश्वत (काल-स्थायी) । सिद्धे भवई (हवइ) = सिद्ध होता है । वा = अथवा । अप्परए = अल्प कर्म रज वाला । महिड्डिए = महर्द्धिक । देवे = देव होता है । त्ति बेमि = ऐसा मैं कहता हूँ। त्ति बेमि = (इति ब्रवीमि) ऐसा मैं कहता हूँ।
भावार्थ-वह नारकादि पर्यायों का सर्वथा त्याग करके जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है। कामना नहीं होने से उसको भवभ्रमण नहीं करना पड़ता। वह शाश्वत सिद्ध पद का अधिकारी बन जाता है अथवा अल्प कर्म वाला महर्द्धिक देव होता है। पौदगलिक इच्छा, जो भव-भ्रमण का कारण है, नहीं रहने से उसके लिये साधना में सिद्धि प्राप्त करना सरल होता है।
।। नौवाँ अध्ययन-चतुर्थ उद्देशक समाप्त ।। xa888888888888888888SA