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[दशवैकालिक सूत्र गृहवास सदा है क्लेश सहित, और मुनि जीवन है क्लेश रहित।
बन्धन है गृहवास तथा, मुनि का जीवन है मोक्ष सहित ।। अन्वयार्थ-आयंके = यह शरीर रोगों का घर है, इसमें अचानक रोगों का आतंक, रोगों की उत्पत्ति हो जाती है। से = वे रोग । वहाय होइ = मृत्यु के मुख तक पहुँचा देते हैं। ऐसे समय में धर्म ही जीव का एक मात्र सहायक होता है । और कोई नहीं। संकप्पे = इष्ट वियोग और अनिष्ट संयोग से जीव के मन में सदा ही संकल्प-विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं। से = वे संकल्प-विकल्प प्राणी मात्र के लिये। वहाय होइ = अहितकारी होते हैं। इनसे जीव में आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान बना रहता है। गिहिवासे = गृहस्थाश्रम । सोवक्के से = क्लेशयुक्त है और । परियाए = संयमी जीवन, साधु जीवन । णिरुवक्के से = क्लेश रहित है, क्योंकि सच्ची शान्ति त्यागमय जीवन में ही है। गिहिवासे= गृहस्थ-जीवन । बंधे = बन्धन रूप है, कर्मों के बन्धन का स्थान है और । परियाए = संयमी-साधु जीवन । मुक्खे = मोक्ष में ले जाने वाला है, मोक्ष रूप है अर्थात् कर्मों के बन्धन से छुड़ाने वाला है, क्योंकि त्याग में ही सच्ची मुक्ति है।
भावार्थ-9. वहाँ गृहवास में आतंक वध के लिये होता है। 10. वहाँ संकल्प वध के लिये होता है। 11. गृहवास क्लेश सहित है और मुनि-पर्याय क्लेश रहित है। 12. गृहवास बन्धन है और मुनि-पर्याय मुक्ति का साधन है।
13. सावज्जे गिहिवासे, अणवज्जे परियाए। हिन्दी पद्यानुवाद
घर में होते हैं पाप कर्म, बहुमलिन कर्म करने पड़ते। बाधा पर बाधा आती है, जिससे न धर्म बढ़ने पाते ।। अनवद्य साधुता है जग में, उत्कृष्ट कर्म इसके होते।
समता सब जीवों में होती, कोई न पराये हैं होते ।। अन्वयार्थ-गिहिवासे = गृहवास । सावज्जे = सावद्य यानी पाप का स्थान है और । परियाए = मुनि पर्याय-संयमी जीवन । अणवज्जे = निरवद्य है, निर्दोष, निष्पाप एवं पवित्र है।
भावार्थ-13. गृहवास सावध है और मुनि पर्याय अनवद्य-निर्दोष है।
14. बहुसाहारणा गिहिणं काम-भोगा। हिन्दी पद्यानुवाद
काम भोग इस जगत में, सर्वोत्तम सुख कहलाते हैं। किन्तु नहीं इनका फल अच्छा, सब शास्त्र यही बतलाते हैं।।