Book Title: Dash Vaikalika Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 304
________________ 292] [दशवैकालिक सूत्र 1. हं भो ! दुस्समाए दुप्पजीवी। हिन्दी पद्यानुवाद द:ख बहल पंचम आरे में, जन क्षण-क्षण द:ख पाते हैं। सुख के लिये घोर श्रम कर, जी भर दुःख पा पछताते हैं।। ये लोग बड़ी कठिनाई से, दुःख से निर्वाह चलाते हैं। रोते हैं नित्य वे, कभी नहीं, हँसने का अवसर पाते हैं ।। अन्वयार्थ-हं भो ! = (अपनी आत्मा को सम्बोधित करते हुए इस प्रकार विचार करना चाहिये कि) हे आत्मन् ! दुस्समाए = इस दुषमकाल का जीवन ही। दुप्पजीवी = दु:खमय है। भावार्थ-1. ओह ! इस दुःषम काल के दुःखबहुल आरे में लोग बड़ी कठिनाई से जीविका चलाते हैं। संसार रोग, शोक, दुःख और क्लेश से भरा पड़ा है। 2. लहुस्सगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा। 3. भुज्जो य साइबहुला (असाइ बहुला) मणुस्सा। 4. इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाइ भविस्सइ। हिन्दी पद्यानुवाद हैं तुच्छ गृहस्थ के काम भोग, दिखता कुछ भी सार नहीं, स्वल्प सार क्षण भर का सुख, चिरकाल का है निस्तार नहीं। हैं मनुज जगत के बड़े कुटिल, जिनके अच्छे व्यवहार नहीं, आगे न बढ़ेंगे दु:ख मेरे, हैं उनका चिर आधार नहीं ।। अन्वयार्थ-गिहीणं = इस दुषम काल के अन्दर गृहस्थ लोगों के । काम भोगा = काम भोग । लहुस्सगा = लघु अर्थात् तुच्छ हैं और । इत्तरिया = अल्पकालीन हैं । य = और । भुज्जो मणुस्सा = इस दुषम काल के बहुत से मनुष्य । साइबहुला = बड़े कपटी व मायावी होते हैं। इमे य दुक्खे = और वह दुःख । मे = जो मेरे मन में उत्पन्न हुआ है। न चिरकालो वट्ठाइ भविस्सइ = बहुत काल तक नहीं रहेगा। भावार्थ-2. गृहस्थों के कामभोग स्वल्प सार वाले, तुच्छ, अल्पकालिक और क्षण भंगुर हैं। 3. इस काल के मनुष्य प्राय: मायाबहुल-कुटिल होते हैं । 4. यह मेरा परीषह-जनित दुःख चिरकाल तक रहने वाला नहीं होगा। 5. ओमजणपुरक्कारे। 6. वंतस्स य पडियाइयणं ।' 1. पडिआयणं पाठान्तर।

Loading...

Page Navigation
1 ... 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329