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[दशवैकालिक सूत्र (वसुलि) = हे ! दुराचारी । दमए = हे ! कंगाल । वावि = अथवा । दुहए = हे ! भाग्यहीन । एवं = इस प्रकार के शब्दों से । न भासिज्ज (भासेज्ज) = सम्बोधित नहीं करे, ऐसे शब्द न बोले।
भावार्थ-ऐसे ही बुद्धिमान् साधु किसी को हल्के शब्दों से जैसे-हे होल, हे लंपट, हे कुत्ते, हे लुच्चे, हे कंगाल, हे अभागे, आदि अपशब्दों से सम्बोधित न करे। किसी को ऐसे कड़वे मर्मभेदी वचन बोलना सत्य महाव्रती को शोभा नहीं देता। लोक में कहावत है कि साधु की परीक्षा शब्दों से होती है। पुराने समय की घटना है कि एक गाँव में शीत ऋतु के समय एक चक्षुहीन सन्त धूप में बैठे थे। उधर से ठाकुर की सवारी निकली। आगे छड़ी लेकर दरोगा जा रहा था। उसने कहा-“आन्धा ! राम-राम।” बाबा ने कहा-“गोला राम-राम।" पीछे कामदार आया। उसने बाबाजी को आन्धा नहीं बोलकर कहा-“सूरदास ! राम राम।" बाबाजी ने कहा-“कामदार राम-राम।" फिर दीवानजी का घोड़ा निकला, उसने कहा-“सूरदासजी ! रामराम।” बाबाजी ने उत्तर में कहा- “दीवान जी ! राम-राम।” जब ठाकुर सा. आये तो उन्होंने कहा"सूरदास जी महाराज ! राम-राम।” सूरदास बोले-“ठाकुर साहब ! राम-राम।” ठाकुर ने पूछा- “महाराज ! आपके आँखें नहीं हैं, फिर भी आपने सबको पहचाना कैसे ?” सूरदासजी बोले-“मैंने उनकी अलगअलग बोली से पहचाना कि ये कौन-कौन हैं।"
अज्जिए पज्जिए वा वि, अम्मो माउस्सिय त्ति य।
पिउस्सिए भायणिज्ज त्ति, धूए णत्तुणिए त्ति य ।।15।। हिन्दी पद्यानुवाद
हे दादी ! या परदादी, हे परनानी माँ मौसी होती।
यह भाषा मुनि को कल्प्य नहीं, भाणजी भुआ दोहिती पोती।। ___ अन्वयार्थ-अज्जिए = हे, आर्यिक (दादी) । पज्जिए = हे नानी, हे परदादी । वा वि = अथवा । अम्मो = हे माँ । माउस्सियत्ति (माउसिय त्ति) = हे मौसी । य = और । पिउस्सिए = हे भुआ। भायणिज्ज (भाइणेज्ज) = हे भाणजी। त्ति = इसी तरह। धूए = हे बेटी । य = और । णत्तुणिएत्ति (णत्तुणिअत्ति) = हे दोहिती! इस प्रकार संसार के इन सम्बोधनों या सम्बन्धों से किसी को न बुलावे ।
भावार्थ-साधु को मोह बढ़ाने वाले और हल्के अप्रिय शब्दों से भी किसी स्त्री को सम्बोधित नहीं करना चाहिये । जैसे-दादी, नानी, परदादी, परनानी, माँ, मौसी, भानजी, बेटी, पोती, दोहिती आदि । ऐसे शब्द मोह बढ़ाने वाले होने से साधु के लिए वर्जित कहे गये हैं।
हले हल्लित्ति अण्णित्ति, भट्टे सामिणि गोमिणि । होले गोले वसुलित्ति, इत्थियं णेवमालवे ।।16।।