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नौवाँ अध्ययन]
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स्त्री पुरुष हैं, वे जन-जन के प्रेम - पात्र होते हैं । नम्र स्वभाव से सर्वत्र कीर्त्ति अर्जित करते हैं । घर-घर में सत्कार पाते हैं और सब प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त कर, सभी प्रकार के सुख भोगते हुए देखे जाते हैं। तहेव अविणीअप्पा, देवा जक्खा य गुज्झगा । दीसंति दुहमेहंता, आभिओगमुवट्ठिआ ।।10।।
हिन्दी पद्यानुवाद
वैसे अविनीत हृदय वाले, सुर यक्ष और गुह्यक सारे । बन दास दूसरे देवों के, देखे जाते दुःख के मारे ।।
अन्वयार्थ-तहेव = जिस प्रकार विनीत - अविनीत, तिर्यंच और मनुष्यों के क्रमश: गुण दोष बताये गये हैं, उसी प्रकार अब देवों के विषय में भी बताया जाता है। अविणीअप्पा = जो मनुष्य अविनीत स्वभाव वाले होते हैं, जो अहंकार वश मन्त्र-तन्त्रादि का प्रयोग करते हैं एवं अपने धर्माचार्य-उपाध्याय आदि की अविनय-आशातना व निन्दा आदि करते हैं, वे आयुष्य पूर्ण करके, कुछ अच्छी करणी व तप आदि करने से भले ही । देवा जक्खा य गुज्झगा = वैमानिक अथवा ज्योतिष देव, यक्षादि व्यंतर देव तथा भवनपति आदि गुह्यक देव रूप में उत्पन्न हो जाते हैं। पर वहाँ भी ऊँची पदवी नहीं पाते। हीन जाति के किल्विषी देव बनते हैं । आभिओगमुवट्ठिआ = बड़े देवों के सेवक बनकर उनकी सेवा करते हुए एवं पराधीन जीवन जीते हुए। दुहमेहंता दीसंति = वहाँ भी नाना प्रकार के दुःख भोगते हुए देखे जाते हैं।
भावार्थ-जो जीव अविनीत होते हैं वे अपनी मनुष्य अथवा तिर्यंच की आयुष्य पूर्ण करके अपनी कुछ अच्छी करणी से स्वर्ग में वैमानिक, ज्योतिष, यक्ष, व्यंतर, भवनपति या गुह्यक आदि देवजातियों में उत्पन्न होकर भी हीन जाति के देव होते हैं। वहाँ भी वे ऊँची पदवी नहीं पाते हैं। बड़े देवों के सेवक बनते हैं और उनकी सेवा करते हुए पराधीनता वश वहाँ भी नाना प्रकार के दुःख भोगते हुए देखे जाते हैं । कहावत भी है कि ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहिं ।' अविनीत शिष्यों की यही दशा होती है ।
हिन्दी पद्यानुवाद
तव सुविणीअप्पा, देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति सुहमेहंता, इड्डि पत्ता महाजसा ।।11।।
वैसे सुविनीत हृदय वाले, सुर यक्ष तथा गुह्यक सारे । ऋद्धिमन्त और महायशी, दिखते हैं हृष्ट पुष्ट सारे ।।
अन्वयार्थ-तहेव = इसी प्रकार । सुविणीअप्पा = सुविनीत स्वभाव वाले जीव । देवा जक्खा = देव, यक्ष । य गुज्झगा = और गुह्यक जाति के देव रूपों में उत्पन्न होकर भी। महाजसा = बड़े यशस्वी होते हैं । इड्विं पत्ता = ऋद्धिवन्त एवं समृद्धिशाली होते हैं और । सुहमेहंता = स्वर्ग में अलौकिक सुख भोगते हुए । दीसंति = देखे जाते हैं।