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नौवाँ अध्ययन]
[247 जहा ससी कोमुइ जोगजुत्तो, नक्खत्त-तारागण-परिवुडप्पा।
खेसोहइ विमले अन्भमुक्के, एवं गणी-सोहइ भिक्खुमज्झे ।।15।। हिन्दी पद्यानुवाद
जैसे चन्द्र चन्द्रिका संयुत, तारा नक्षत्रों से घिरे हुए।
अभ्र रहित नभ में शोभित हों, त्यों गणी भिक्षु से घिरे हुए।। अन्वयार्थ-जहा = जैसे । कोमुइजोगजुत्तो = शरत्काल की पूर्णिमा के योग वाला । ससी = चन्द्र । नक्खत्त = ग्रह नक्षत्र एवं । तारागण = तारा समूह से। परिवुडप्पा = घिरा हुआ। अब्भमुक्के = बादलों से रहित । विमले = निर्मल । खे = आकाश में । सोहइ = शोभा पाता है। एवं = ऐसे ही। भिक्खुमज्झे = भिक्षु मण्डल में । गणी = आचार्य । सोहइ = शोभित होते हैं।
भावार्थ-निर्मल और बादलों से मुक्त स्वच्छ गगन में जैसे कार्तिक पूर्णिमा का चन्द्र, ग्रह-नक्षत्रों से घिरा हुआ शोभा पाता है, वैसे ही आचार्य साधु समूह में अपनी ज्ञान ज्योत्स्ना से शोभित होते हैं। दूसरे शब्दों में आचार्य को दीपक के समान स्व-पर को प्रकाशित करने वाला कहा गया है-'दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवंति। अत: धर्म गुरु ज्योतिर्धर भी है।
महागरा आयरिया महेसी, समाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए।
संपाविउकामे अणुत्तराई, आराहए तोसए धम्मकामी ।।16।। हिन्दी पद्यानुवाद
उत्कृष्ट ज्ञान लाभ इच्छुक, धर्मी दे तोष प्रसन्न करे ।
श्रुत शील बुद्धि से ध्यान बीच, मोक्षेच्छुक गुरु का मान करे ।। अन्वयार्थ-अणुत्तराई = सर्वश्रेष्ठ गुणों को। संपाविउकामे = प्राप्त करने की इच्छा वाले। धम्मकामी = धर्मकामी को चाहिये कि । समाहिजोगे = समाधि योग और । सुयसीलबुद्धिए = श्रुत, शील एवं बुद्धि के । महागरा = महान् आकर । महेसी = महर्षि । आयरिया = आचार्य महाराज की। आराहए = आराधना करे तथा । तोसए = उन्हें प्रसन्न करे।
भावार्थ-आचार्य श्रेष्ठ गुण, जैसे-समाधियोग, श्रुतशील और बुद्धि आदि के महान् आकर (भण्डार) हैं। ज्ञान-क्रिया का कोई गुण उनमें अवशिष्ट नहीं रहता। अत: सर्वश्रेष्ठ गुणों को पाने की इच्छा वाला, धर्मकामी मुनि सर्वतोभावेन उनकी आराधना करे। उनके प्रति अपनी प्रगाढ़ विनय भक्ति एवं सेवा से उन्हें प्रसन्न रखे।