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[दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद
उच्चार-भूमि से युक्त तथा, पशु महिला या क्लीब रहित ।
स्वीकार करे मुनि शयनासन, यदि स्थानक निर्मित हों परकृत ।। अन्वयार्थ-लयणं = जो मकान । अण्णटुं = गृहस्थ के अन्य प्रयोजन हेतु अथवा दूसरों के लिये। पगडं = बनाया हआ हो । उच्चारभूमि संपण्णं = और जो उच्चार-मल मूत्रादि परठने की भूमि से युक्त हो । इत्थी पसु विवज्जियं = और जो स्त्री, पशु-पडंग से रहित हो उसको तथा वैसे ही । सयणासणं = शयन-आसन-पाट-पाटिया आदि । भइज्ज = सेवन करे यानी अपने उपयोग में ले।
भावार्थ-सम्पूर्ण हिंसा का त्यागी साधु कैसे मकान में ठहरे जिससे कि वह हिंसा दोष से बच सके। इस सम्बन्ध में शास्त्रकार कहते हैं-साधु गृहस्थ के लिये बनाये हुए मकान का, जो मल-मूत्रादि उत्सर्ग योग्य भूमि से युक्त हो, स्त्री, पशु एवं नपुंसक से रहित हो, जहाँ पर स्त्रियों की दृष्टि नहीं पड़े तथा वैसे ही अन्य प्रयोजन हेतु बनाये गये पाट-पाटिया का उपयोग करे । साधु के उद्देश्य से बनाये गये उपाश्रय एवं आसनादि आधाकर्म आदि दोष युक्त होने से साधु के लिये अग्राह्य होते हैं।
विवित्ता य भवे सिज्जा, नारीणं न लवे कह।
गिहि-संथवं न कुज्जा, कुज्जा साहुहिं संथवं ।।।3।। हिन्दी पद्यानुवाद
एकान्त उपाश्रय हो मुनि का, नारी से वह नहीं कथा करे।
ना करे गृहस्थों से परिचय, मुनियों से परिचय सदा करे ।। अन्वयार्थ-सिज्जा = संयमी के ठहरने का स्थान । विवत्ता य = एकान्त और दोष रहित । भवे = हो । नारीणं = केवल नारियों के मध्य में । कई = कथा । न लवे = नहीं करे । गिहि संथवं = गृहिजनों का संसर्ग अति परिचय । न कुज्जा = नहीं करे । साहुहिं = साधुओं के साथ । संथवं कुज्जा = परिचय करे ।
__ भावार्थ-साधु की संयम-साधना निर्दोष रहे और उसमें राग की मात्रा नहीं बढ़े, इस दृष्टि से शास्त्रकार कहते हैं कि-52वीं गाथा में कहे अनुसार स्त्री, पशु, पडंग आदि से रहित स्थान में वह ठहरे । एकान्त स्थान हो वहाँ स्त्रियों को कथा नहीं कहे । केवल स्त्रियों के बीच कथा नहीं करे। जैसाकि प्रश्न-व्याकरण सूत्र के चतुर्थ संवर द्वार में कहा गया है कि-"नारिजणस्स मज्झे न कहेयव्वा कहा।" स्त्री समुदाय में हास्य रस की कथा करने से मोहभाव की जागृति होती है जो स्वपर दोनों के लिये अहितकर है। नारियों के अतिरिक्त गृहिजनों का अति परिचय भी प्रमाद-वृद्धि का कारण होने से वर्जित कहा गया है। साधु-साध्वी को ज्ञान दर्शन चारित्र की वृद्धि के लिये साधु पुरुषों के साथ संसर्ग करना ही हितकर कहा गया है।