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सातवाँ अध्ययन] हिन्दी पद्यानुवाद
अच्छी खरीद बिक्री अच्छी, यह क्रेय पण्य अक्रेय नहीं । यह ले लो और दो उसे छोड़, मुनि बोले ऐसे वचन नहीं ।।
अन्वयार्थ-सुक्कीयं = अच्छा खरीदा । वा = अथवा । सुविक्कीयं = अच्छा बेचा। अजिं ( अकेज्जं ) = यह खरीदने योग्य नहीं है। वा = अथवा । किज्जमेव (केज्जमेव) = यह खरीदने लायक है । इमं = यह । गिण्ह (गेण्ह) = खरीद लो । इमं = यह । मुंच = छोड़ दो। पणियं = पण्य के विषय में । नो वियागरे = ऐसा नहीं कहे ।
हिन्दी पद्यानुवाद
भावार्थ-क्रय-विक्रय के प्रसंग से किसी को रागवश साधु यह नहीं कहे कि यह अच्छा खरीदा, कारण कि फिर यह महँगा होने वाला है अथवा अच्छे में बेचा दिया, क्योंकि आगे इसके भाव घटने वाले हैं, यह खरीदने योग्य नहीं है, या यह खरीदने योग्य है, इसको खरीद लो, इसको मत खरीदो, इस प्रकार पण्य वस्तु के सम्बन्ध में कुछ कहना साधु के लिये उचित नहीं है ।
अप्पग्घे वा महग्घे वा, कए वा विक्कए वि वा । पणियट्ठे समुप्पण्णे, अणवज्जं वियागरे 1146।।
1. वयाहीति पाठान्तर ।
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अल्प मूल्य या अधिक मूल्य, क्रय एवं विक्रय वस्तु के बारे में । पण्य वस्तु का पा प्रसंग, निरवद्य वचन कहे सारे में ।।
अन्वयार्थ-अप्पग्घे = अल्पमूल्य के । वा = अथवा । महग्घे = अधिक मूल्य के पण्य को । वा = और । कए = खरीदने । वा = अथवा । विक्कए = बेचने के सम्बन्ध में । वि वा = एवं । पणियट्ठे = काम का प्रसंग । समुप्पण्णे = उत्पन्न होने पर । अणवज्जं = निरवद्य वचन | वियागरे = बोले ।
भावार्थ-साधु आरम्भ-परिग्रह का त्यागी है । अत: उसे किसी से खरीद-बिक्री के सम्बन्ध में चाहे वस्तु कम कीमत की हो या अधिक कीमती, प्रसंग पाकर ऐसी भाषा बोलनी चाहिये जो निर्दोष हो । त्यागविराग की ओर प्रेरित करना ही साधु का काम है, और वह क्या खरीदे, क्या नहीं इस सम्बन्ध में साधु को तटस्थ रहकर अनीति से बचने का ही उपदेश देना चाहिये ।
तहेवासंजयं धीरो, आस एहि करेहि वा ।
सयं चिट्ठ वयाहित्ति', नेवं भासिज्ज पण्णवं । । 47 ।।